आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ख़ुश-आमदीद वो आया हमारी चौखट पर, बहार जिस के क़दम का तवाफ़ करती है।
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