आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
एक मुद्दत से न क़ासिद है न ख़त है न पयाम, अपने वा'दे को तू कर याद मुझे याद न कर!
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