उन दिनों मेरी शख्सियत-ओ-आवारगी के चर्चे आम होते रहे,
कुछ चुभते अल्फाजों को, लबो पे हम भी बेअरमान होते रहे।
वक़्त की तो फितरत है, अपनी रफ़्तार में चलने की,
वो अपने अंदाज़ में चलता रहा और, हम बदनाम होते रहे।।
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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