लड़ना है गर तो ढूंढ बराबर का आदमी
तू क्यों खड़ा है रोक के रस्ता फ़क़ीर का
वो जिस अंदाज़ से आती है चिड़िया मेरे आंगन में
अगर आना मेरे घर में तो उस अंदाज़ से आनालेता है तलाशी मेरी आँखों की हमेशा
कम्बख़त,वो आंसू भी छुपाने नहीं देताबस्ती के सारे लोग तो मौजूद हैं मगर
खिड़की से मुझको देखनेवाला चला गयाबैठा है हाथ जोड़े आँखों में एक आंसू
देखा नहीं है मैंने पूजा में यूं किसी कोज्ञानप्रकाश विवेक
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