Tuesday, April 16, 2024

उस को सोचा ही नहीं जिस से मोहब्बत नहीं की

वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की 

उस को सोचा ही नहीं जिस से मोहब्बत नहीं की 

अब के भी तेरे लिए जाँ से गुज़र जाएँगे हम 
हम ने पहले भी मोहब्बत में सियासत नहीं की 

तुम से क्या वादा-ख़िलाफ़ी की शिकायत करते 
तुम ने तो लौट के आने की भी ज़हमत नहीं की 

धड़कनें सीने से आँखों में सिमट आई थीं 
वो भी ख़ामोश था हम ने भी वज़ाहत नहीं की 

रात को रात ही इस बार कहा है हम ने 
हम ने इस बार भी तौहीन-ए-अदालत नहीं की 

गर्द-ए-आईना हटाई है कि सच्चाई खुले 
वर्ना तुम जानते हो हम ने बग़ावत नहीं की 
बस हमें इश्क़ की आशुफ़्ता-सरी खींचती है 
रिज़्क़ के वास्ते हम ने कभी हिजरत नहीं की 

आ ज़रा देख लें दुनिया को भी किस हाल में है 
कई दिन हो गए दुश्मन की ज़ियारत नहीं की 

तुम ने सब कुछ किया इंसान की इज़्ज़त नहीं की 
क्या हुआ वक़्त ने जो तुम से रिआयत नहीं की 

Saleem Kausar

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