जब भी मिलती हो अपनी सी लगती हो।
अधूरा रह गया वो सपना सी लगती हो।।
ज़िन्दगी तुम तो रंग बदलती रहती हो।
इसीलिए मुझको बेगाना सी लगती हो।।
वादा करना पलट जाना फ़ितरत है तुम्हारी।
फिर क्यों मुझे जान-ए-जानाॅं सी लगती हो।।
ग़म-ए-उल्फत-ए-जानां में पीने लगा हूं मैं।
तुम्हीं साकी तुम्हीं पैमाना सी लगती हो।।
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