ना साथी की तलाश थी,
ना किसी के सहारे की दरकार थी,
सफर लंबा था, हमसफर की ख्वाइश न थी,
मंजिल का पता नहीं और प्यार की भी तलब न थी,
कुछ बिखरे रिश्तो को समेटना बाकी था,
कुछ अपनों को संभालना बाकी था ,
जिंदगी की राह कैसी भी थी,
वह चल रही थी अकेली,
बस उसके लिए यही काफी था।
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