Wednesday, June 7, 2023

सर पर पूरा आलम उठाए हुए हैं

आजकल मेरे महबूब सर पर पूरा आलम उठाए हुए हैं

साल भर में दिखा हूँ उन्हें सो मुँह को अपने फुलाए हुए हैं 
पास जाकर ख़ुदी देख लो तुम मौत आसाँ लगी है सभी को
उनके आगे फ़रिश्ते तो गर्दन जाने कब से झुकाए हुए हैं 
हाथ कोई कमण्डल है उनके लाल टीका लगा है जबीं पर 
ऐसे आए हैं का'बे में जैसे कोई मंदिर में आए हुए हैं 
भीड़ लगने लगी है सुना जब एक तिल और भी है कमर पर
लोग ये फ़लसफ़ा देखने को आज जन्नत से आए हुए हैं 
जब सुना है नक़ाब उठने वाली रुक गई दिल की धड़कन सभी की 
आज होगी क़यामत ख़ुदा भी उनपे नज़रें जमाए हुए हैं 
एक तो है कड़ाके की गर्मी पाँव जलते जमीं पर धरूँ तो 
और ऊपर से महबूब मेरे सर पे टोपा लगाए हुए हैं 
बोले हाकिम को उँगली दिखा कर आँच मुझ पर न आ जाए कोई 
मेरे जितने भी इल्ज़ाम थे वो सर पे अपने उठाए हुए हैं 
मेरा काँटो भरा रास्ता है रात उनको ख़बर क्या लगी वो 
पाँव धरने से पहले ही आगे हुस्न अपना बिछाए हुए हैं 
उनसे कह दो अब आजाद कर दें वरना होगी क़यामत किसी दिन 
जन्म से ही मुझे अपने घर में यार बंदी बनाए हुए हैं

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