Tuesday, June 6, 2023

ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूँ निकल नहीं रहा

ये वहम जाने मेरे दिल से क्यूँ निकल नहीं रहा 

कि उस का भी मिरी तरह से जी सँभल नहीं रहा 

कोई वरक़ दिखा जो अश्क-ए-ख़ूँ से तर-ब-तर न हो 
कोई ग़ज़ल दिखा जहाँ वो दाग़ जल नहीं रहा 

मैं एक हिज्र-ए-बे-मुराद झेलता हूँ रात दिन 
जो ऐसे सब्र की तरह है जिस का फल नहीं रहा 

तो अब मिरे तमाम रंज मुस्तक़िल रहेंगे क्या? 
तो क्या तुम्हारी ख़ामुशी का कोई हल नहीं रहा? 

कड़ी मसाफ़तों ने किस के पाँव शल नहीं किए? 
कोई दिखाओ जो बिछड़ के हाथ मल नहीं रहा 

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