ये तो नहीं कि ग़म नहीं
हाँ मिरी आँख नम नहीं
नश्शा सँभाले है मुझे
बहके हुए क़दम नहीं
कहते हो दहर को भरम
मुझ को तो ये भरम नहीं
और ही है मक़ाम-ए-दिल
दैर नहीं हरम नहीं
तुम भी तो तुम नहीं हो आज
हम भी तो आज हम नहीं
क्या मिरी ज़िंदगी तिरी
भूली हुई क़सम नहीं
'ग़ालिब'-ओ-'मीर'-ओ-'मुसहफ़ी'
हम भी 'फ़िराक़' कम नहीं
Firaq Gorakhpuri
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