रह गई याद हो गए तनहा
सितम करता वक़्त लम्हा लम्हा
करना था या नहीं करना था
वो बात आज धीऱे से जो महसूस हुई
वो बात आज मैं तुमसे कहुँ कैसे
ढूढ़ना था या कहीं ख़ुदको खोना था
वो राह आज चुपकेसे जो मोड़ गई
वो राह से आज मैं तुमको पुकारूँ कैसे
मिलना था या कहीं तनहा रहना था
वो छाँव आज चुपकेसे छोड़ गई
वो छाँव में आज मैं तुमको लाऊँ कैसे
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