Saturday, December 31, 2022

अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष

पलकों के तट चूमकर, कहे नयन-जलधार ।

बीते हैं पल दर्द के, हुआ नया भिनसार ।।

जीवन कहते हैं जिसे, है सुख-दुख का मेल ।
ख़ुशियाँ दो पल जो मिलें, लेकर दुख भी झेल ।।

अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत-भरी कमीज़ ।
बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज ।।

भाई ने परदेस से, किया बहिन को फोन ।
तेरी खुशियों से बड़ा, मेरा जग में कौन ।।

घर में या परदेस में ,सबसे मुझको प्यार ।
सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार ।।

नए साल से हम कहें-कर लो दुआ कुबूल ।
माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल ।। 

मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल ।
फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल ।। 

अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष ।
छोड़ उदासी को यहाँ, आ पहुँचा है हर्ष ।। 

जितनी खुद से है हमें ,जीवन की हर आस ।
उससे भी ज़्यादा हमें, तुम पर है विश्वास । 

जिसके मन में नेह है, सच्ची है हर साँस।
और मीत से प्यार है, वह पहले ही पास ।

तुम जैसे होंगे जहाँ ,इस धरती पर लोग ॥
स्वर्ग बनेगे घर -नगर , मिट जाएँगे सोग ॥

-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 

Thursday, December 29, 2022

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं - दुष्यंत कुमार

आगे निकल गए हैं घिसटते हुए क़दम
राहों में रह गए हैं निशाँ और भी ख़राब 


माथे पे रख के हाथ बहुत सोचते हो तुम
गंगा क़सम बताओ हमें क्या है माजरा 


उन का कहीं जहाँ में ठिकाना नहीं रहा
हम को तो मिल गया है अदब में मक़ाम और 


जाने किस किस का ख़याल आया है
इस समुंदर में उबाल आया है 

एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यूँ कहो
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशन-दान है


मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार 

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
ये अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है


यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा 

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए 


अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं 


दुष्यंत क़ुमार

Monday, September 12, 2022

एक मुकम्मल तेरा चेहरा बनता है

धूप में जलते हैं तब साया बनता है,

बड़े जतन से कोई अपना बनता है,


सारे बिखरे ख़्वाब इकट्ठा करने पर,

एक मुकम्मल तेरा चेहरा बनता है!

      

        ~अक्स समस्तीपुरी 

Friday, September 9, 2022

मीरा से पूछोगे तो अमृत ही कहेगी

बेर कैसे थे, ये शबरी से पूछो,

श्रीराम से पूछोगे तो मीठे ही कहेंगे।


ज़हर का स्वाद शिव से पूछो,

मीरा से पूछोगे तो अमृत ही कहेगी।


नीरज

Saturday, August 13, 2022

तुम्हारी मोतियों की और ज़री के तार की राखी

चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी 

सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी 
बनी है गो कि नादिर ख़ूब हर सरदार की राखी 
सलोनों में अजब रंगीं है उस दिलदार की राखी 
न पहुँचे एक गुल को यार जिस गुलज़ार की राखी 

अयाँ है अब तो राखी भी चमन भी गुल भी शबनम भी 
झमक जाता है मोती और झलक जाता है रेशम भी 
तमाशा है अहा हा-हा ग़नीमत है ये आलम भी 
उठाना हाथ प्यारे वाह-वा टुक देख लें हम भी 
तुम्हारी मोतियों की और ज़री के तार की राखी 

मची है हर तरफ़ क्या क्या सलोनों की बहार अब तो 
हर इक गुल-रू फिरे है राखी बाँधे हाथ में ख़ुश हो 
हवस जो दिल में गुज़रे है कहूँ क्या आह मैं तुम को 
यही आता है जी में बन के बाम्हन, आज तो यारो 
मैं अपने हाथ से प्यारे के बाँधूँ प्यार की राखी 

हुई है ज़ेब-ओ-ज़ीनत और ख़ूबाँ को तो राखी से 
व-लेकिन तुम से ऐ जाँ और कुछ राखी के गुल फूले 
दिवानी बुलबुलें हों देख गुल चुनने लगीं तिनके 
तुम्हारे हाथ ने मेहंदी ने अंगुश्तों ने नाख़ुन ने 
गुलिस्ताँ की चमन की बाग़ की गुलज़ार की राखी


अदा से हाथ उठते हैं गुल-ए-राखी जो हिलते हैं 
कलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं 
कहाँ नाज़ुक ये पहुँचे और कहाँ ये रंग मिलते हैं 
चमन में शाख़ पर कब इस तरह के फूल खिलते हैं 
जो कुछ ख़ूबी में है उस शोख़-ए-गुल-रुख़्सार की राखी 

फिरें हैं राखियाँ बाँधे जो हर दम हुस्न के तारे 
तो उन की राखियों को देख ऐ जाँ चाव के मारे 
पहन ज़ुन्नार और क़श्क़ा लगा माथे उपर बारे 
'नज़ीर' आया है बाम्हन बन के राखी बाँधने प्यारे 
बँधा लो उस से तुम हँस कर अब इस त्यौहार की राखी 

Wednesday, August 10, 2022

​तेरे मेरे रिश्ते का यही एक हिसाब रहा,

तेरे मेरे रिश्ते का यही एक हिसाब रहा,  

मैं दिल ही दिल रहा तू सदा दिमाग रहा.

Friday, August 5, 2022

थी जिस की जुस्तुजू वो हक़ीक़त नहीं मिली

थी जिस की जुस्तुजू वो हक़ीक़त नहीं मिली 

इन बस्तियों में हम को रिफ़ाक़त नहीं मिली 

अब तक हैं इस गुमाँ में कि हम भी हैं दहर में 
इस वहम से नजात की सूरत नहीं मिली 

रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर 
इन रोज़ ओ शब में मुझ को ये फ़ुर्सत नहीं मिली 

कहना था जिस को उस से किसी वक़्त में मुझे 
इस बात के कलाम की मोहलत नहीं मिली 

कुछ दिन के बा'द उस से जुदा हो गए 'मुनीर' 
उस बेवफ़ा से अपनी तबीअ'त नहीं मिली 

Friday, July 22, 2022

अच्छी सूरत

​अच्छी सूरत को संवरने की जरूरत क्या है, 

सादगी में भी कयामत की अदा होती है!

Thursday, July 21, 2022

अनायास आंसुओं से मन भर रहा है

न जाने क्यों रोने का जी कर रहा है, 

अनायास आंसुओं से मन भर रहा है। 

क्या ये किसी दुर्घटना का पूर्वाभास है, 

या मन में बैठा कोई अनजाना अहसास है।

यशवंत यादव

Tuesday, July 12, 2022

शराब - 6 शायरों का अलग नजरिया.

एक ही विषय पर 6 शायरों का अलग नजरिया.... जरूर पढें :-


1- *Mirza Ghalib*: 1797-1869


"शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर,

या वो जगह बता जहाँ ख़ुदा नहीं।" 


....... इसका जवाब लगभग 100 साल बाद मोहम्मद इकबाल ने दिया...... 


2- *Iqbal*: 1877-1938


"मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं ,

काफिर के दिल में जा, वहाँ ख़ुदा नहीं।"


....... इसका जवाब फिर लगभग 70 साल बाद अहमद फराज़ ने दिया...... 


3- *Ahmad Faraz*: 1931-2008


"काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर, 

खुदा मौजूद है वहाँ, पर उसे पता नहीं।"


....... इसका जवाब सालों बाद वसी ने दिया...... 


4- *Wasi*:1976-present


"खुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह है,

तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं।"


वसी साहब की शायरी का जवाब साकी ने दिया 


5- *Saqi*: 1986-present


"पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए,

जन्नत में कौन सा ग़म है इसलिए वहाँ पीने में मजा नही।".....


में हमारे एक दोस्त  के हिसाब से - 


आज एक दोस्त ने कहा:-


"ला भाई दारू पिला, बकवास न यूँ बांचो,

जहाँ मर्ज़ी वही पिएंगे, भाड़ में जाएँ ये पांचों".....


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Friday, June 3, 2022

इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है

इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है 

सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है 

ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है 
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है 

दिल संग-ए-मलामत का हर-चंद निशाना है 
दिल फिर भी मिरा दिल है दिल ही तो ज़माना है 

हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है 
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है 

वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न माना है 
सब दिल की शरारत है आँखों का बहाना है 

शाइ'र हूँ मैं शाइ'र हूँ मेरा ही ज़माना है 
फ़ितरत मिरा आईना क़ुदरत मिरा शाना है 

जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है 
अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है 

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है 
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है 

आग़ाज़-ए-मोहब्बत है आना है न जाना है 
अश्कों की हुकूमत है आहों का ज़माना है 

आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं 
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है 

हम दर्द-ब-दिल नालाँ वो दस्त-ब-दिल हैराँ 
ऐ इश्क़ तो क्या ज़ालिम तेरा ही ज़माना है 

या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से 
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है 

ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा हाँ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा 
आज एक सितमगर को हँस हँस के रुलाना है 

थोड़ी सी इजाज़त भी ऐ बज़्म-गह-ए-हस्ती 
आ निकले हैं दम-भर को रोना है रुलाना है 

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे 
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है 

ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उन का क्या कम है रक़ीब अपना 
जब देखिए अब वो हैं आईना है शाना है 

तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ 
इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श दिखाना है 

ये हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क़-ओ-शबाब अपना 
जीने की तमन्ना है मरने का ज़माना है 

मुझ को इसी धुन में है हर लहज़ा बसर करना 
अब आए वो अब आए लाज़िम उन्हें आना है 

ख़ुद्दारी-ओ-महरूमी महरूमी-ओ-ख़ुद्दारी 
अब दिल को ख़ुदा रक्खे अब दिल का ज़माना है 

अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में 
मा'सूम मोहब्बत का मा'सूम फ़साना है 

आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन 
बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है 


Friday, May 13, 2022

रिश्तों मे दूरी बढ़ रही है

सबूतों की ज़रूरत पङ रही है

यानी रिश्तों मे दूरी बढ़ रही है

कोइ टूट गया है तेरे रूठ जाने से

बहुत उदास हे कोई तेरे जाने से 

होसके तो लौट आ किसी बहाने से,

तू लाख खफा सही मगर एक बार तो देख , 

कोइ टूट गया है तेरे रूठ जाने से।

मोहबत के साथ या यादो के साथ !

उनका बादा भी अजीब था 

बोले जिन्दगी भर साथ निभाएंगे ,

पर पागल हम थे - ये पूछना भूल ही गए के 

मोहबत के साथ या यादो के साथ !

मै सही तुम गलत के खेल में

कुछ कह गए, कुछ सह गए, 

कुछ कहते कहते रह गए.

मै सही तुम गलत के खेल में, 

न जाने कितने रिश्ते ढह गए.

उनके दूर जाने के साथ आंखे नम थी

उनके दूर जाने के साथ आंखे नम थी 

ज़िन्दगी उनसे शुरू उन पर खत्म थी 

वो रूठ के दूर रहने लगे हमसे शायद 

हमारी मोहब्बत में ही कमी थी

अभी वो हौसले वो यकीन बाकी हैं

कुछ दूरियां तो कुछ फासले बाकी हैं 

अभी कुछ दूरियां तो कुछ फासले बाकी हैं 

पल पल सिमटती शाम से कुछ रौशनी बाकी हैं 

हमें यकीन है वो देखा हुआ कल आएगा ज़रूर, 

अभी वो हौसले वो यकीन बाकी हैं

मीलों की दूरियां हैं और धड़कन करीब हैं

तेरा मेरा दिल का रिश्ता भी अजीब हैं, 

मीलों की दूरियां हैं और धड़कन करीब हैं

तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता हैं

माना कि दूरियां कुछ बढ़ सी गयी हैं लेकिन,

तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता हैं

कौन चाहता हैं अपनों से दूर होना

वक्त नूर को बेनूर कर देता हैं, 

छोटे से जख्म को नासूर कर देता हैं, 

कौन चाहता हैं अपनों से दूर होना, 

वक्त सबको मजबूर कर देता हैं

दूरियाँ बहुत हैं मगर इतना समझ लो

दूरियाँ बहुत हैं मगर इतना समझ लो, 

पास रह कर ही कोई ख़ास नहीं होता, 

तुम इस कदर पास हो मेरे दिल के, 

मुझे दूरियों का एहसास नहीं होता

फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नहीं.

गलतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नहीं, 

दोनों इंसान हैं, ख़ुदा तू भी नही, मैं भी नहीं.

गलतफहमियों ने कर दी दोनो में पैदा दूरियां, 

वरना फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नहीं.

Wednesday, May 11, 2022

हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ!


हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ!

वही हाँ, वही जो युगों से गगन को 
बिना कष्ट-श्रम के सम्हाले हुए हूँ; 
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ। 

वही हाँ, वही जो धरा का बसंती 
सुसंगीत मीठा गुँजाती फिरी हूँ; 
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ। 

वही हाँ, वही जो सभी प्राणियों को 
पिला प्रेम-आसव जिलाए हुए हूँ, 
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ। 

क़सम रूप की है, क़सम प्रेम की है, 
क़सम इस हृदय की, सुनो बात मेरी— 
अनोखी हवा हूँ, बड़ी बावली हूँ! 
बड़ी मस्तमौला, नहीं कुछ फ़िकर है, 
बड़ी ही निडर हूँ, जिधर चाहती हूँ 
उधर घूमती हूँ, मुसाफ़िर अजब हूँ! 
न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, 
न इच्छा किसी की, न आशा किसी की, 
न प्रेमी, न दुश्मन, 
जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ! 
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ। 
जहाँ से चली मैं जहाँ को गई मैं, 
शहर, गाँव, बस्ती, 
नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर, 
झुलाती चली मैं, झुमाती चली मैं, 
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ। 

चढ़ी पेड़ महुआ, थपाथप मचाया, 
गिरी धम्म से फिर, चढ़ी आम ऊपर, 
उसे भी झकोरा, किया कान में ‘कू’ 
उतर कर भगी मैं हरे खेत पहुँची— 
वहाँ गेहुँओं में लहर ख़ूब मारी, 
पहर दो पहर क्या, अनेकों पहर तक 
इसी में रही मैं। 
खड़ी देख अलसी लिए शीश कलसी, 
मुझे ख़ूब सूझी! 
हिलाया-झुलाया, गिरी पर न कलसी! 
इसी हार को पा, 
हिलाई न सरसों, झुलाई न सरसों, 
मज़ा आ गया तब, 
न सुध-बुध रही कुछ, 
बसंती नवेली भरे गात में थी! 
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ! 

मुझे देखते ही अरहरी लजायी, 
मनाया-बनाया, न मानी, न मानी, 
उसे भी न छोड़ा— 
पथिक आ रहा था, उसी पर ढकेला, 
लगी जा हृदय से, कमर से चिपक कर, 
हँसी ज़ोर से मैं, हँसी सब दिशाएँ, 
हँसे लहलहाते हरे खेत सारे, 
हँसी चमचमाती भरी धूप प्यारी, 
बसंती हवा में हँसी सृष्टि सारी! 
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ।

केदारनाथ अग्रवाल

Monday, May 9, 2022

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते 


अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं 
मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते 

कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं 
कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते 

शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब आँखों के सहरा 
नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते 

कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में 
कुछ याद-जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते 

उश्शाक़ के मानिंद कई अहल-ए-हवस भी 
पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते 

सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है 
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते

Thursday, May 5, 2022

मुस्कुराहट पर कहे चुनिंदा शेर

मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिए

फूल बंजर में उगाना सीखिए
- नीरज गोस्वामी


कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है
- शकील जमाली 

मुस्कुराहट है हुस्न का ज़ेवर
मुस्कुराना न भूल जाया करो
- अब्दुल हमीद अदम 


न जाने हार है या जीत क्या है
ग़मों पर मुस्कुराना आ गया है
- सय्यद एहतिशाम हुसैन

तड़प जाता हूँ जब बिजली चमकती देख लेता हूँ
कि इस से मिलता-जुलता सा किसी का मुस्कुराना है
- ग़ुलाम मुर्तज़ा कैफ़ काकोरी 


हमें भी मुस्कुराना चाहिए था
मगर कोई बहाना चाहिए था
- आसिमा ताहिर

हमें बर्बादियों पे मुस्कुराना ख़ूब आता है
अँधेरी रात में दीपक जलाना ख़ूब आता है
- चाँदनी पांडे 


मौत भी गर देख ले तो जल मरे
ज़िंदगी यूँ मुस्कुराना चाहिए
- अशोक गोयल अशोक 

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
- वसीम बरेलवी 


मसाइब को छुपाना जानता है
ये लड़का मुस्कुराना जानता है
- आजिज़ कमाल राना 

Wednesday, April 27, 2022

दोपहर शायरी

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
- हसरत मोहानी


ऐ दोपहर की धूप बता क्या जवाब दूँ
दीवार पूछती है कि साया किधर गया
- उम्मीद फ़ाज़ली 

अकेले घर में भरी दोपहर का सन्नाटा
वही सुकून वही उम्र भर का सन्नाटा
- इशरत आफ़रीं 


कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी
कभी बदन के लिए इक करन ज़ियादा हुई
- नसीम सहर 

ग़मों की दोपहर में काम आया
किसी के रेशमी आँचल का साया
- सेवक नैयर 


जो हौसला हो तो हल्की है दोपहर की धूप
तुनक-मिज़ाजों को लगती है यूँ क़मर की धूप
- ज़हीर सिद्दीक़ी 

चाँदनी रात माँगने वालो
आसमाँ तपती दोपहर देगा
- मोहम्मद अहमद रम्ज़ 


कितनी अजीब बात थी जब सर्द रात से
हम दोपहर की गर्म हवा माँगते रहे
- अनवर मीनाई 

मिला जब से तिरी ज़ुल्फ़ों का साया
जुनूँ की दोपहर बदली हुई है
- सुल्तान शाकिर हाश्मी 


क्या वही आएगी ले कर चिलचिलाती दोपहर
इक सुहानी धूप जो लगती भली सी है अभी
- जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर

Monday, April 25, 2022

ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में

ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में

तमाम तेरी हिकायतें हैं 
ये तज़्किरे तेरे लुत्फ़ के हैं 
ये शे'र तेरी शिकायतें हैं 
मैं सब तिरी नज़्र कर रहा हूँ 
ये उन ज़मानों की साअ'तें हैं 

जो ज़िंदगी के नए सफ़र में 
तुझे किसी वक़्त याद आएँ 
तो एक इक हर्फ़ जी उठेगा 
पहन के अन्फ़ास की क़बाएँ 
उदास तन्हाइयों के लम्हों 
में नाच उट्ठेंगी ये अप्सराएँ 

मुझे तिरे दर्द के अलावा भी 
और दुख थे ये मानता हूँ 
हज़ार ग़म थे जो ज़िंदगी की 
तलाश में थे ये जानता हूँ 
मुझे ख़बर थी कि तेरे आँचल में 
दर्द की रेत छानता हूँ 

मगर हर इक बार तुझ को छू कर 
ये रेत रंग-ए-हिना बनी है 
ये ज़ख़्म गुलज़ार बन गए हैं 
ये आह-ए-सोज़ाँ घटा बनी है 
ये दर्द मौज-ए-सबा हुआ है 
ये आग दिल की सदा बनी है 

और अब ये सारी मता-ए-हस्ती 
ये फूल ये ज़ख़्म सब तिरे हैं 
ये दुख के नौहे ये सुख के नग़्मे 
जो कल मिरे थे वो अब तिरे हैं 
जो तेरी क़ुर्बत तिरी जुदाई 
में कट गए रोज़-ओ-शब तिरे हैं 

वो तेरा शाइ'र तिरा मुग़न्नी 
वो जिस की बातें अजीब सी थीं 
वो जिस के अंदाज़ ख़ुसरवाना थे 
और अदाएँ ग़रीब सी थीं 
वो जिस के जीने की ख़्वाहिशें भी 
ख़ुद उस के अपने नसीब सी थीं 

न पूछ इस का कि वो दिवाना 
बहुत दिनों का उजड़ चुका है 
वो कोहकन तो नहीं था लेकिन 
कड़ी चटानों से लड़ चुका है 
वो थक चुका था और उस का तेशा 
उसी के सीने में गड़ चुका है

Sunday, April 24, 2022

किताब शायरी

​ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है

कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है

- राजेश रेड्डी 



इधर उधर से किताब देखूँ

ख़याल सोचूँ कि ख़्वाब देखूँ

- सलीम मुहीउद्दीन 


थोड़ी सी मिट्टी की और दो बूँद पानी की किताब

हो अगर बस में तो लिखें ज़िंदगानी की किताब

- मुनीर अनवर 



कभी आँखें किताब में गुम हैं

कभी गुम हैं किताब आँखों में

- मोहम्मद अल्वी 

खुली किताब थी फूलों-भरी ज़मीं मेरी

किताब मेरी थी रंग-ए-किताब उस का था

- वज़ीर आग़ा 



किताब खोल के देखूँ तो आँख रोती है

वरक़ वरक़ तिरा चेहरा दिखाई देता है

- अहमद अक़ील रूबी 

कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब

अब तो चेहरे को ही अख़बार किया जाना है

- राजेश रेड्डी 



लम्हे लम्हे से बनी है ये ज़माने की किताब

नुक़्ता नुक़्ता यहाँ सदियों का सफ़र लगता है

- मुईद रशीदी 

काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के

दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया

- बशीर बद्र 



मैं तो था मौजूद किताब के लफ़्ज़ों में

वो ही शायद मुझ को पढ़ना भूल गया

- कृष्ण कुमार तूर

Saturday, April 9, 2022

तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है

तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है

बला के पेच में आया हुआ है 


न क्यूँकर बू-ए-ख़ूँ नामे से आए 

उसी जल्लाद का लिक्खा हुआ है 


चले दुनिया से जिस की याद में हम 

ग़ज़ब है वो हमें भूला हुआ है 


कहूँ क्या हाल अगली इशरतों का 

वो था इक ख़्वाब जो भूला हुआ है 


जफ़ा हो या वफ़ा हम सब में ख़ुश हैं 

करें क्या अब तो दिल अटका हुआ है 


हुई है इश्क़ ही से हुस्न की क़द्र 

हमीं से आप का शोहरा हुआ है 


बुतों पर रहती है माइल हमेशा 

तबीअत को ख़ुदाया क्या हुआ है 


परेशाँ रहते हो दिन रात 'अकबर' 

ये किस की ज़ुल्फ़ का सौदा हुआ है 

Thursday, April 7, 2022

तलाश

हम गुमशुदा हैं कबसे कैसी तलाश है

भीड़ भरी दुनिया में अपनी तलाश है

न कारवां रुका न कभी मंज़िलें मिलीं
छूटा जो पीछे उस सफ़र की तलाश है

मेरे किरदार में मेरी मौज़ूदगी न ढूंढ
मुझे एक अदद कहानी की तलाश है

मिलेंगे सितारे जो ज़िद पर हम आए
मिले आसमां बस, उसी की तलाश है

बुलंदियां हासिल हों, हमें ये शौक़ नहीं
हदों से रहगुज़र हैं, बेहद की तलाश है

सितारे पलकों पे हम ने सजा के रक्खे हैं

ये और बात कि आगे हवा के रक्खे हैं

चराग़ रक्खे हैं जितने जला के रक्खे हैं 

नज़र उठा के उन्हें एक बार देख तो लो 
सितारे पलकों पे हम ने सजा के रक्खे हैं 

करेंगे आज की शब क्या ये सोचना होगा 
तमाम काम तो कल पर उठा के रक्खे हैं 

किसी भी शख़्स को अब एक नाम याद नहीं 
वो नाम सब ने जो मिल कर ख़ुदा के रक्खे हैं 

उन्हें फ़साने कहो दिल की दास्तानें कहो 
ये आईने हैं जो कब से सजा के रक्खे हैं 

ख़ुलूस दर्द मोहब्बत वफ़ा रवादारी 
ये नाम हम ने किसी आश्ना के रक्खे हैं 

तुम्हारे दर के सवाली बनें तो कैसे बनें 
तुम्हारे दर पे तो काँटे अना के रक्खे हैं

Monday, April 4, 2022

चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें

चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें

दिल पे आँखें रक्खें तेरी साँसें देखें 

सुर्ख़ लबों से सब्ज़ दुआएँ फूटी हैं 
पीले फूलों तुम को नीली आँखें देखें 

साल होने को आया है वो कब लौटेगा 
आओ खेत की सैर को निकलें कूजें देखें 

थोड़ी देर में जंगल हम को आक़ करेगा 
बरगद देखें या बरगद की शाख़ें देखें 

मेरे मालिक आप तो सब कुछ कर सकते हैं 
साथ चलें हम और दुनिया की आँखें देखें 

हम तेरे होंटों की लर्ज़िश कब भूले हैं 
पानी में पत्थर फेंकें और लहरें देखें

चुप-चाप अपनी आग में जलते रहो

क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे 

जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू करे 

अब तो हमें भी तर्क-ए-मरासिम का दुख नहीं 
पर दिल ये चाहता है कि आग़ाज़ तू करे 

तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी 
ख़ुद को गँवा के कौन तिरी जुस्तुजू करे 

अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए 
ता-ज़िंदगी ये दिल न कोई आरज़ू करे 

तुझ को भुला के दिल है वो शर्मिंदा-ए-नज़र 
अब कोई हादसा ही तिरे रू-ब-रू करे 

चुप-चाप अपनी आग में जलते रहो 'फ़राज़' 
दुनिया तो अर्ज़-ए-हाल से बे-आबरू करे

जो हो गए हो फ़साना तो याद आओ मत

दुखे हुए हैं हमें और अब दुखाओ मत

जो हो गए हो फ़साना तो याद आओ मत 

ख़याल-ओ-ख़्वाब में परछाइयाँ सी नाचती हैं 
अब इस तरह तो मिरी रूह में समाओ मत 

ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में 
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत 

तुम्हारा सर नहीं तिफ़्लान-ए-रह-गुज़र के लिए 
दयार-ए-संग में घर से निकल के जाओ मत 

सिवाए अपने किसी के भी हो नहीं सकते 
हम और लोग हैं लोगो हमें सताओ मत 

हमारे अहद में ये रस्म-ए-आशिक़ी ठहरी 
फ़क़ीर बन के रहो और सदा लगाओ मत 

वही लिखो जो लहू की ज़बाँ से मिलता है 
सुख़न को पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ में छुपाओ मत 

सुपुर्द कर ही दिया आतिश-ए-हुनर के तो फिर 
तमाम ख़ाक ही हो जाओ कुछ बचाओ मत

Sunday, April 3, 2022

तुम्हें याद हो के न याद हो !

वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो

वही वादा यानि निबाह का, तुम्हें याद हो के न याद हो !

जिसे आप गिनते थे आशना, जिसे आप कहते थे बावफ़ा

मैं वही हूँ मोमिन-ए-मुब्तला, तुम्हें याद हो के न याद हो !


Wednesday, March 30, 2022

प्रेरणा देते शायरों के अल्फ़ाज़

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है
- अमीर मीनाई 


कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर
- निदा फ़ाज़ली

अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया
- जिगर मुरादाबादी 


ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
- माहिर-उल क़ादरी 

प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े
- इक़बाल साजिद 


रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है
- इरफ़ान सिद्दीक़ी 

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
- साहिर लुधियानवी 


मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
- अमीर क़ज़लबाश 

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
- बशीर बद्र 


इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जग
- अनवर शऊर 

Monday, March 28, 2022

जरूरी तो नहीं

हर सफर में हमसफ़र हो,जरूरी तो नहीं

आसान हो मंज़िल का डगर,जरूरी तो नहीं 

अच्छी लगती है हर खूबसूरत चीज 

लेकिन हर खूबसूरत चीज अच्छी हो,जरूरी तो नहीं । 

माना चेहरा उसका सुंदर नहीं 

लेकिन दिल की भी बेकार हो जरूरी तो नहीं 

ये खुदा बने जो फिरते है 

कम से कम इंसान हो,जरूरी तो नहीं । 

दर बदर भटकते हो जिसकी खुशियों के लिए 

वो कुछ पल भी खुशी दे तुझे,जरूरी तो नहीं 

शिकवे, गिले,खफा,शिकायत हर चीज है जीवन में 

लेकिन हर बात पर पीये जहर ही,जरूरी तो नहीं। 

Tuesday, March 22, 2022

इक बार हम भी उसे,आंख भर के देखेंगे

इक बार हम भी उसे,आंख भर के देखेंगे

अपने हाथों खुद को, बर्बाद कर के देखेंगे।।

 

सारी उम्र गांव- गांव,शहर-शहर भटके हैं।। 
उसके शहर में, एक रात ठहर के देखेंगे।। 

ग़मज़दा हैं, समझ में कुछ भी नहीं आता । 
ऐसे माहौल में, कहकहा लगा कर देखेंगे।। 

ढूंढने पर भी,बात सुनने वाला नहीं मिलता। 
दिल की बात, खुद को ही सुना कर देखेंगे।। 

तारीफ़ करते हैं हिरण भी,उसकी आंखों की। 
ग़ज़ल सी आंखों की, तारीफ कर के देखेंगे।। 

बहुत गुमान था हमें',अपनी हस्ती पर। 
अब उसकी हस्ती में, मस्तूर हो कर देखेंगे।। 

Wednesday, March 16, 2022

मैं तुझे फिर मिलूँगी - अमृता प्रीतम

मैं तुझे फिर मिलूँगी

कहाँ कैसे पता नहीं 

शायद तेरे कल्पनाओं 

की प्रेरणा बन 

तेरे केनवास पर उतरुँगी 

या तेरे केनवास पर 

एक रहस्यमयी लकीर बन 

ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी 

मैं तुझे फिर मिलूँगी 

कहाँ कैसे पता नहीं 


या सूरज की लौ बन कर 

तेरे रंगो में घुलती रहूँगी 

या रंगो की बाँहों में बैठ कर 

तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी 

पता नहीं कहाँ किस तरह 

पर तुझे ज़रुर मिलूँगी 


या फिर एक चश्मा बनी 

जैसे झरने से पानी उड़ता है 

मैं पानी की बूंदें 

तेरे बदन पर मलूँगी 

और एक शीतल अहसास बन कर 

तेरे सीने से लगूँगी 


मैं और तो कुछ नहीं जानती 

पर इतना जानती हूँ 

कि वक्त जो भी करेगा 

यह जनम मेरे साथ चलेगा 

यह जिस्म ख़त्म होता है 

तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है 


पर यादों के धागे 

कायनात के लम्हें की तरह होते हैं 

मैं उन लम्हों को चुनूँगी 

उन धागों को समेट लूंगी 

मैं तुझे फिर मिलूँगी 

कहाँ कैसे पता नहीं 


मैं तुझे फिर मिलूँगी


Main Tenu Fer Milangi
I will meet you again

Kithe? Kis trah? Pata nahi
Shayad tere Takhiyl di Chinag banke
Tere Canvas te Utrangi
Ya Khore teri Canvas dey Utte
Ik Rahasmayi Lakir Banke
Khamosh Tenu Takdi Rawangi

Jaa Khore Suraj ki Loo banke
Tere Ranga vich Ghulangi
Jaa Ranga diyan Bahwa vich beth ke
Teri Canvas nu Wlangi
Pata nahi Kis Trah-Kithe
Par Tenu Zarur Milangi

Jaa Khore Ik Chashma bani Howangi
Te jivan Jharneya da Paani udd da
Main Pani diyan Bunda
Tere Pind te Malangi
Te Ik Thandak jahi banke
Teri Chhaati de naal Lagangi
Main Hor Kuch nahi Jaandi
Par Ena Jaandi
Ki Waqt jo v karega
Ae Janam Mere naal Turega

Ae Jism Mukkda hai
Tan Sab Kuch Mukk janda
Par Cheteyan dey Dhaage
Kaayenaati Kana dey Hunde
Main unha kana nu chunagi
Dhageyan nu walangi
Te tenu main fer milangi


I will meet you yet again

How and where? I know not.

Perhaps I will become a

figment of your imagination

and maybe, spreading myself

in a mysterious line

on your canvas,

I will keep gazing at you.

Perhaps I will become a ray

of sunshine, to be

embraced by your colours.

I will paint myself on your canvas

I know not how and where –

but I will meet you for sure.

Maybe I will turn into a spring,

and rub the foaming

drops of water on your body,

and rest my coolness on

your burning chest.

I know nothing else

but that this life

will walk along with me.

When the body perishes,

all perishes;

but the threads of memory

are woven with enduring specks.

I will pick these particles,

weave the threads,

and I will meet you yet again.


मैं तैनू फ़िर मिलांगी
कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के
तेरे केनवास ते उतरांगी
जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते
इक रह्स्म्यी लकीर बण के  
खामोश तैनू तक्दी रवांगी

जा खोरे सूरज दी लौ बण के
तेरे रंगा विच घुलांगी
जा रंगा दिया बाहवां विच बैठ के

तेरे केनवास नु वलांगी
पता नही किस तरह कित्थे
पर तेनु जरुर मिलांगी
जा खोरे इक चश्मा बनी होवांगी
ते जिवें झर्नियाँ दा पानी उड्दा
मैं पानी दियां बूंदा
तेरे पिंडे ते मलांगी
ते इक ठंडक जेहि बण के
तेरी छाती दे नाल लगांगी
मैं होर कुच्छ नही जानदी
पर इणा जानदी हां
कि वक्त जो वी करेगा
एक जनम मेरे नाल तुरेगा
एह जिस्म मुक्दा है
ता सब कुछ मूक जांदा हैं
पर चेतना दे धागे

कायनती कण हुन्दे ने
मैं ओना कणा नु चुगांगी
ते तेनु फ़िर मिलांगी


******
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी
कहाँ किस तरह पता नही
शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी  
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
खामोश तुझे देखती रहूंगी
या फ़िर सूरज कि लौ बन कर  
तेरे रंगो में घुलती रहूंगी
या रंगो कि बाहों में बैठ कर
तेरे केनवास से लिपट जाउंगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे जरुर मिलूंगी

या फ़िर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूंगी

और एक ठंडक सी बन कर
तेरे सीने से लगूंगी



मैं और कुछ नही जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जी भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म खतम होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है 

पर चेतना के धागे

कायनात के कण होते हैं


मैं उन कणों को चुनुंगी
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी !! 



ਮੈਂ ਤੈਨੂ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਕਿੱਥੇ ? ਕਿਸ ਤਰਹ ਪਤਾ ਨਈ 

ਸ਼ਾਯਦ ਤੇਰੇ ਤਾਖਿਯਲ ਦੀ ਚਿਂਗਾਰੀ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਤੇ ਉਤਰਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਦੇ ਉੱਤੇ

ਇਕ ਰਹ੍ਸ੍ਮ੍ਯੀ ਲਕੀਰ ਬਣ ਕੇ 

ਖਾਮੋਸ਼ ਤੈਨੂ ਤਕ੍ਦੀ ਰਵਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਸੂਰਜ ਦੀ ਲੌ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਰਂਗਾ ਵਿਚ ਘੁਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਰਂਗਾ ਦਿਯਾ ਬਾਹਵਾਂ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਨੁ ਵਲਾਂਗੀ

ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਸ ਤਰਹ ਕਿੱਥੇ

ਪਰ ਤੇਨੁ ਜਰੁਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਇਕ ਚਸ਼੍ਮਾ ਬਨੀ ਹੋਵਾਂਗੀ

ਤੇ ਜਿਵੇਂ ਝਰ੍ਨਿਯਾਁ ਦਾ ਪਾਨੀ ਉਡ੍ਦਾ

ਮੈਂ ਪਾਨੀ ਦਿਯਾਂ ਬੂਂਦਾ

ਤੇਰੇ ਪਿਂਡੇ ਤੇ ਮਲਾਂਗੀ

ਤੇ ਇਕ ਠਂਡਕ ਜੇਹਿ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੀ ਛਾਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਲਗਾਂਗੀ

ਮੈਂ ਹੋਰ ਕੁੱਛ ਨਹੀ ਜਾਨਦੀ

ਪਰ ਇਣਾ ਜਾਨਦੀ ਹਾਂ 

ਕਿ ਵਕ੍ਤ ਜੋ ਵੀ ਕਰੇਗਾ

ਏਕ ਜਨਮ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਤੁਰੇਗਾ

ਏਹ ਜਿਸ੍ਮ ਮੁਕ੍ਦਾ ਹੈ

ਤਾ ਸਬ ਕੁਛ ਮੂਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈਂ

ਪਰ ਚੇਤਨਾ ਦੇ ਧਾਗੇ

ਕਾਯਨਤੀ ਕਣ ਹੁਨ੍ਦੇ ਨੇ

ਮੈਂ ਓਨਾ ਕਣਾ ਨੁ ਚੁਗਾਂਗੀ

ਤੇ ਤੇਨੁ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ