कुछ दूरियां तो कुछ फासले बाकी हैं
अभी कुछ दूरियां तो कुछ फासले बाकी हैं
पल पल सिमटती शाम से कुछ रौशनी बाकी हैं
हमें यकीन है वो देखा हुआ कल आएगा ज़रूर,
अभी वो हौसले वो यकीन बाकी हैं
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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