आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
न जाने क्यों रोने का जी कर रहा है,
अनायास आंसुओं से मन भर रहा है।
क्या ये किसी दुर्घटना का पूर्वाभास है,
या मन में बैठा कोई अनजाना अहसास है।
यशवंत यादव
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