दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
- हसरत मोहानी
ऐ दोपहर की धूप बता क्या जवाब दूँ
दीवार पूछती है कि साया किधर गया
- उम्मीद फ़ाज़ली
अकेले घर में भरी दोपहर का सन्नाटा
वही सुकून वही उम्र भर का सन्नाटा
- इशरत आफ़रीं
कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी
कभी बदन के लिए इक करन ज़ियादा हुई
- नसीम सहर
ग़मों की दोपहर में काम आया
किसी के रेशमी आँचल का साया
- सेवक नैयर
जो हौसला हो तो हल्की है दोपहर की धूप
तुनक-मिज़ाजों को लगती है यूँ क़मर की धूप
- ज़हीर सिद्दीक़ी
चाँदनी रात माँगने वालो
आसमाँ तपती दोपहर देगा
- मोहम्मद अहमद रम्ज़
कितनी अजीब बात थी जब सर्द रात से
हम दोपहर की गर्म हवा माँगते रहे
- अनवर मीनाई
मिला जब से तिरी ज़ुल्फ़ों का साया
जुनूँ की दोपहर बदली हुई है
- सुल्तान शाकिर हाश्मी
क्या वही आएगी ले कर चिलचिलाती दोपहर
इक सुहानी धूप जो लगती भली सी है अभी
- जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर
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