आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा ज़िंदगी मैं तुझे नाकाम न होने दूँगा!
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