मेरी ज़िन्दगी किसी और की, मेरे नाम का कोई और है
मेरा अक्स है सर-ए-आईना, पस-ए-आइना कोई और है
मेरी धड़कनों में है चाप सी, ये जुदाई भी है मिलाप सी
मुझे क्या पता, मेरे दिल बता, मेरे साथ क्या कोई और है
किसकी आहट है, किसका दिख रहा अक्स है,
जिसको चाहा है दिल से, क्या ये वही शख्स है...
किसी का अक्स-ए-बदन था न वो शरारा था।
तो मैं ने ख़ेमा-ए-शब से किसे पुकारा था।
कहाँ किसी को थी फ़ुर्सत फ़ुज़ूल बातों की,,,
तमाम रात वहाँ ज़िक्र बस तुम्हारा था।
बसा लेने दे अक्स तेरा अपनी आंखों में मुझे
फिर तुझे कोई यूं देखने वाला मिले ना मिले!
कीजिए न कोई ऐसा काम आके इस जमाने में
के धिक्कार दे अक्स ही आके आपके आइने में!
wo chaand hai to aks bhi paani mein aayega
kirdaar khud ubhar ke kahaani mein आएगा!
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