“भीड़ से छूटा हुआ रोज यही सोचता हूँ ,
क्यूँ मेरी बात निकल जाती है मुझ से आगे ?
एक अरसे से मैं और रात साथ चलते हैं ,
सुब्ह तक रात निकल जाती है मुझ से आगे..!”
~कुमार विश्वास
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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