आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
चराग़ों को उछाला जा रहा है, हवा पर रौब डाला जा रहा है न हार अपनी न अपनी जीत होगी, मगर सिक्का उछाला जा रहा है -राहत इंदौरी
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