Saturday, July 13, 2019

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर, हे हरि, डाला जाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक।

【म‌ाखनलाल चतुर्वेदी】

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