आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
चलो आज मांग लेते हैं, हक़ से हम तुम्हें, देखते हैं, हक़-ए-बन्दगी में, कशिश कितनी है!
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