यकीन किया तो ये जाना, यकीन में क्या क्या है,
ये आसमान से पूछो जरा, जमीन में क्या क्या है!
तुम्हारे हाथ का गुलदस्ता आ रहा है नज़र,
मगर पता तो चले, आस्तीन में क्या क्या है!
बादशाहो से भी फेंके सिक्के ना लिए हमने,
खैरात भी मांगी हैं तो खुददारी से!
फक़ीर, शेख, कलन्दर, इमाम, क्या-क्या है,
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है!
सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे!
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
राहत इंदौरी
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