Monday, April 28, 2025

हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो' थी नहीं कुछ कम है

हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

घर की ता'मीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है

अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तिरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है

~ शहरयार

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