समय से पहले भले ज़िंदगी की शाम आए
किसी तरह तो उदासी का घाव भर जाएहम अब उदास नहीं सर-ब-सर उदासी हैं
हमें चराग़ नहीं रौशनी कहा जाए
जो शेर समझे मुझे दाद-वाद देता रहे
गले लगाए जिसे ग़म समझ में आ जाए
किसी के हँसने से रौशन हुई थी बाद-ए-सबा
कोई उदास हुआ तो गुलाब मुरझाए
ये एक दुख जो दबा रह गया है आँखों में
वो एक मिस्रा जिसे शे'र कर नहीं पाए
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