Thursday, April 24, 2025

गले लगाए जिसे ग़म समझ में आ जाए

 समय से पहले भले ज़िंदगी की शाम आए

किसी तरह तो उदासी का घाव भर जाए

हम अब उदास नहीं सर-ब-सर उदासी हैं
हमें चराग़ नहीं रौशनी कहा जाए

जो शेर समझे मुझे दाद-वाद देता रहे
गले लगाए जिसे ग़म समझ में आ जाए

किसी के हँसने से रौशन हुई थी बाद-ए-सबा
कोई उदास हुआ तो गुलाब मुरझाए

ये एक दुख जो दबा रह गया है आँखों में
वो एक मिस्रा जिसे शे'र कर नहीं पाए

बालमोहन पांडेय

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