Tuesday, April 29, 2025

हम जान हार गुज़रे

दिन डूबे  हैं या डूबे बारात लिये क़श्ती

साहिंल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

*

हंस हंस के जवां दिल के

हम क्यों न चुनें टुकड़े

हर शख्स की क्रिस्मत में

ईनाम नहीं होता

*

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में

घुल जाए कोई राही

बदनाम सही लेकिन

गुमनाम नहीं होता

*
यूँ तेरी रहगुज़र से
दीवानावार गुजरे
काँधे पे अपने रख के अपना
मज़ार गुज़रे
*
बैठे हैं रास्ते में दिल का
खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक
दिन बहार गुज़रे
*
तू ने भी हम को देखा हमने
भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा
हम जान हार गुज़रे

-मीना कुमारी

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