दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये क़श्ती
साहिंल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
*
हंस हंस के जवां दिल के
हम क्यों न चुनें टुकड़े
हर शख्स की क्रिस्मत में
ईनाम नहीं होता
*
जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में
घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन
गुमनाम नहीं होता
*
यूँ तेरी रहगुज़र से
दीवानावार गुजरे
काँधे पे अपने रख के अपना
मज़ार गुज़रे
*
बैठे हैं रास्ते में दिल का
खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक
दिन बहार गुज़रे
*
तू ने भी हम को देखा हमने
भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा
हम जान हार गुज़रे
-मीना कुमारी
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