वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
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आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता
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फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहाँ मातम भी होता है
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अपने अंदाज़ का अकेला था
इस लिए मैं बड़ा अकेला था
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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएं कैसे.
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मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊंगा
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उस ने मेरी राह न देखी और
वो रिश्ता तोड़ लिया
जिस रिश्ते की खातिर मुझ
से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया
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उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले
मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
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दिल की बिगड़ी हुई आदत
से ये उम्मीद न थी
भूल जाएगा ये हक दिन
तिरा याद आना भी
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