Monday, April 28, 2025

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

जो पिछली रात से याद आ रहा है

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आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद

बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता

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फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहाँ मातम भी होता है

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अपने अंदाज़ का अकेला था

इस लिए मैं बड़ा अकेला था

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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छपाएँ कैसे

तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएं कैसे.

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मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र

रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊंगा 

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उस ने मेरी राह न देखी और

वो रिश्ता तोड़ लिया

जिस रिश्ते की खातिर मुझ

से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया

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उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

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दिल की बिगड़ी हुई आदत

से ये उम्मीद न थी

भूल जाएगा ये हक दिन

तिरा याद आना भी

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