Tuesday, April 30, 2024

अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा

अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा 

उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा 

तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं 
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा 

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र 
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा 

सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा 
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा 

वसीम बरेलवी 

Thursday, April 25, 2024

कितने चुप-चाप से लगते हैं शजर शाम के बा'द

तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा'द 

कितने चुप-चाप से लगते हैं शजर शाम के बा'द 

इतने चुप-चाप कि रस्ते भी रहेंगे ला-इल्म 
छोड़ जाएँगे किसी रोज़ नगर शाम के बा'द 

मैं ने ऐसे ही गुनह तेरी जुदाई में किए 
जैसे तूफ़ाँ में कोई छोड़ दे घर शाम के बा'द 

शाम से पहले वो मस्त अपनी उड़ानों में रहा 
जिस के हाथों में थे टूटे हुए पर शाम के बा'द 

रात बीती तो गिने आबले और फिर सोचा 
कौन था बाइस-ए-आग़ाज़-ए-सफ़र शाम के बा'द 

तू है सूरज तुझे मा'लूम कहाँ रात का दुख 
तू किसी रोज़ मिरे घर में उतर शाम के बा'द 

लौट आए न किसी रोज़ वो आवारा-मिज़ाज 
खोल रखते हैं इसी आस पे दर शाम के बा'द 

फ़रहत शाह

जान जाती है दुनिया किसी बहाने से

इश्क छुपता नहीं है छुपाने से,

जान जाती है दुनिया किसी बहाने से |

जब भडकते हैं इश्क़ के शोले,
दिल की लगी बुझती नहीं बुझाने से |

रौशनी है दूर तलक जायेगी,
चराग जलेगा जब आशियाने में |

चर्चा सरेआम हो ही जाता है,
बात ही कुछ ऐसी है इश्क़ के फसाने में |

नाम हो जाता है बदनाम इश्क में,
बात निकल ही जाती है शामियाने से |

कैसे न जान जाए लोग इश्क वालों को,
इश्क में तो आशिक लगते हैं दीवाने से |

इश्क़ में जुदाई लगती है जहर,
कब तक दूर रहे शमा परवाने से |

इश्क महके जैसा भीना चंदन,
छुपती ही नहीं खुशबू जमाने से |

Tuesday, April 23, 2024

पागलों सा तुझको मैं प्यार करता हूँ

पागलों सा तुझको मैं प्यार करता हूँ



तेरी आशिकी में,
पूरा मर जाऊँगा |
कितना भी रोके कोई,
लौट नहीं पाऊँगा |
लम्हों में तुझको ईजहार
करता हूँ |
सच कह रहा हूँ !
पागलों सा तुझको ,
मैं प्यार करता हूँ |
आँखों से आँसू गिरते,
रोक नहीं पाऊँगा |
भले दुनिया हो साथ मेरे,
बिन तेरे ,
चल ही नहीं पाऊँगा |
मरके भी तुझको
मैं याद करता हूँ |
सच कह रहा हूँ !
पागलों सा तुझको ,
मैं प्यार करता हूँ |
तेरी चाहतों की बातें,
करता रहूँगा |
बिछड़ने को बोलोगे तो,
सह नहीं पाऊँगा |
जन्मों से तेरा मैं,
इंतज़ार करता हूँ |
सच कह रहा हूँ !
पागलों सा तुझको ,
मैं प्यार करता हूँ |

प्यार के, इकरार के अंदाज सारे खो गये

प्यार के, इकरार के अंदाज सारे खो गये

वो इशारे, रंग सारे, गीत प्यारे खो गये।

ज़िन्दगी से, हर खुशी से, रोशनी से, दूर हम
इस सफर में, अब भँवर में, सब किनारे खो गये।

आप आये, मुस्कराये, खिलखिलाये, क्यों नहीं?
नित मिलन के, अब नयन के चाँद-तारे खो गये।

ज़िन्दगी-भर एक जलधर -सी इधर रहती खुशी
पर ग़मों में, इन तमों में सुख हमारे खो गये।

फूल खिलता, दिन निकलता, दर्द ढलता अब नहीं
हसरतों से, अब खतों से सब नज़ारे खो गये।

तीर दे, कुछ पीर दे, नित घाव की तासीर दे
पाँव को जंजीर दे, मन के सहारे खो गये।

Monday, April 22, 2024

आओ कुछ देर साथ चलें

आओ कुछ देर साथ चलें

दुनिया की भीड़ से कहीं एकान्त चलें
तुम जान लो सब मेरे मन की
तब जा के कही कुछ बात बने
मैं समझू तुम्हें, तुम समझो मुझे
फिर जा के नये रिश्ते के तार बुनें

आओ कुछ देर साथ चलें
हाथों में लेकर हाथ चलें
इस रिश्ते को प्रेम का नाम दे
इस प्रीत पर दिल हार दे
तुम साथ चलोगे हर कदम
इस विश्वास पर जीवन गुजार दे

यादों की बारिश का कोई मौसम नहीं होता

इस दिल की ज़मीं पर जब चाहे बरस जाएं ।

यादों की बारिश का कोई मौसम नहीं होता ।।

मैं गिरता भी हूँ तो कोई एक संभाल लेता है

कोई तो है जो हाथों में ढाल देता है,

मैं डूबता हूँ तो दरिया उछाल देता है।
हुजूम चलता है दोस्तों का साये की तरह,
मैं गिरता भी हूँ तो कोई एक संभाल लेता है।
'दोष-तो' देखे 'दोस्तों' ने मुझमें काफ़ी
पर देख कर भी, हर कोई टाल देता है।
कैसे अता होगा कर्ज़ ये मुहब्बत का,
इम्तिहाँ ज़िन्दगी का,यही सवाल देता है।

हारूँ भी तो बताते है जीत मेरी,
हर बार आजमाते हैं प्रीत मेरी
लाजवाब , बेमिसाल यार है मेरे
नाहक ही थपथपाते है पीठ मेरी।

रात भर मैं तुझे बस सोचता रहूँ

रात भर मैं तुझे बस सोचता रहूँ

बात जो दिल में छुपी ना किसी से कहूँ
मैने देखी है हर पल राह बस तेरी
राह हर राही से तेरी पूछता रहूँ ।
नींद आती नहीं अब रात भर मुझे
चेहरा तेरा कहे बस प्यार कर मुझे
छूना चाहूँ मैं जब भी तू दूर हो जाए
हाथ दोनों मेरे मजबूर हो जाएं
ऐसा पागल हुआ हूँ मैं प्यार में तेरे
उठ- उठ कर तुझे बस खोजता रहूँ
रात भर मैं तुझे बस सोचता रहूँ ।
याद मेरी तुझे जब भी आ जाएगी
बदलियां पलकों पर तेरी भी छा जाएंगी
तू पुकारेगा जब भी याद करके मुझे
मैं मिलूंगा खड़ा उसी राह पर तुझे
हम मिले थे जहाँ पहली मुलाकात में
मैं वहीं हूँ खड़ा तन्हा बरसात में
तू आए ना जब तक दिलबर मेरे
आंसुओं को मेरे बस पोंछता रहूँ
रात भर मैं तुझे बस सोचता यहाँ ।

आँखों में ही रख लो

 अब दिल में रहना,

गंवारा नहीं !!

आँखों में ही रख लो,

मुझको कहीं !!


पहले से ही दिल में,

हैं लफड़े बड़े !!

कुछ हैं खड़े कुछ,

इधर पड़े कुछ उधर पड़े !!

दिक्कत है बहुत,

बहुत है परेशानी !!

पलकों में ही रख लो,

तुम मुझको कहीं !!


लाखों हैं चाहने वाले तेरे,

सब दिल में ही रहते..

हैं लफड़े बड़े !!

दिल तेरा बना है

यारा धर्मशाला !!

मुझको भी ठहरा दे,

आज की रात कहीं !!

कुछ ना कहूँगा मैं

किसी से..कर ले यकीं !!

Tuesday, April 16, 2024

ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो

ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो 

कुछ न कुछ हम ने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो 

दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी 
चौंक उठता हूँ कहीं तू ने पुकारा ही न हो 

कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर 
सोचता हूँ तिरे आँचल का किनारा ही न हो 

ज़िंदगी एक ख़लिश दे के न रह जा मुझ को 
दर्द वो दे जो किसी तरह गवारा ही न हो 

शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ 
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो 

Jaan Nisar Akhtar

उस को सोचा ही नहीं जिस से मोहब्बत नहीं की

वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की 

उस को सोचा ही नहीं जिस से मोहब्बत नहीं की 

अब के भी तेरे लिए जाँ से गुज़र जाएँगे हम 
हम ने पहले भी मोहब्बत में सियासत नहीं की 

तुम से क्या वादा-ख़िलाफ़ी की शिकायत करते 
तुम ने तो लौट के आने की भी ज़हमत नहीं की 

धड़कनें सीने से आँखों में सिमट आई थीं 
वो भी ख़ामोश था हम ने भी वज़ाहत नहीं की 

रात को रात ही इस बार कहा है हम ने 
हम ने इस बार भी तौहीन-ए-अदालत नहीं की 

गर्द-ए-आईना हटाई है कि सच्चाई खुले 
वर्ना तुम जानते हो हम ने बग़ावत नहीं की 
बस हमें इश्क़ की आशुफ़्ता-सरी खींचती है 
रिज़्क़ के वास्ते हम ने कभी हिजरत नहीं की 

आ ज़रा देख लें दुनिया को भी किस हाल में है 
कई दिन हो गए दुश्मन की ज़ियारत नहीं की 

तुम ने सब कुछ किया इंसान की इज़्ज़त नहीं की 
क्या हुआ वक़्त ने जो तुम से रिआयत नहीं की 

Saleem Kausar

तेरे आ जाने से

वक्त बदल जाता है

तेरे आ जाने आने से
उदास मन भी खिल जाता है
तेरे आ जाने से 
वक्त बदल जाता है...
बहकने लगता है मेरा मन
तेरे आ जाने से
खिल उठता है मेरा आंगन 
तेरे आ जाने से 
वक्त बदल जाता है.....
बढ़ती है धड़कन थम जाते हैं कदम 
तेरे आ जाने से 
वक्त बदल जाता है......

Friday, April 12, 2024

अक्सर एक गंधमेरे पास से गुज़र जाती है

अक्सर एक गंध


मेरे पास से गुज़र जाती है,
अक्सर एक नदी
मेरे सामने भर जाती है,
अक्सर एक नाव
आकर तट से टकराती है,
अक्सर एक लीक
दूर पार से बुलाती है।
मैं जहाँ होता हूँ
वहीं पर बैठ जाता हूँ,
अक्सर एक प्रतिमा
धूल में बन जाती है।
अक्सर चाँद जेब में
पड़ा हुआ मिलता है,
सूरज को गिलहरी
पेड़ पर बैठी खाती है,
अक्सर दुनिया
मटक का दाना हो जाती है,
एक हथेली पर
पूरी बस जाती है।
मैं जहाँ होता हूँ
वहाँ से उठ जाता हूँ,
अक्सर रात चींटी-सी
रेंगती हुई आती है।
अक्सर एक हँसी
ठंडी हवा-सी चलती है,
अक्सर एक दृष्टि
कनटोप-सा लगाती है,
अक्सर एक बात
पर्वत-सी खड़ी होती है,
अक्सर एक ख़ामोशी
मुझे कपड़े पहनाती है।
मैं जहाँ होता हूँ
वहाँ से चल पड़ता हूँ,
अक्सर एक व्यथा
यात्रा बन जाती है।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 

Thursday, April 11, 2024

तुम खूबसूरत हो अपने नाम की तरह

किसी समंदर पार उतरी हुई शाम की तरह,

तुम खूबसूरत हो अपने नाम की तरह

जब भी मिलती हो अपनी सी लगती हो

जब भी मिलती हो अपनी सी लगती हो।

अधूरा रह गया वो सपना सी लगती हो।।

ज़िन्दगी तुम तो रंग बदलती रहती हो।
इसीलिए मुझको बेगाना सी लगती हो।।

वादा करना पलट जाना फ़ितरत है तुम्हारी।
फिर क्यों मुझे जान-ए-जानाॅं सी लगती हो।।

ग़म-ए-उल्फत-ए-जानां में पीने लगा हूं मैं।
तुम्हीं साकी तुम्हीं पैमाना सी लगती हो।।

Tuesday, April 9, 2024

कम्बख़त वो आंसू भी छुपाने नहीं देता

लड़ना है गर तो ढूंढ बराबर का आदमी

तू क्यों खड़ा है रोक के रस्ता फ़क़ीर का

वो जिस अंदाज़ से आती है चिड़िया मेरे आंगन में
अगर आना मेरे घर में तो उस अंदाज़ से आना

लेता है तलाशी मेरी आँखों की हमेशा
कम्बख़त,वो आंसू भी छुपाने नहीं देता

बस्ती के सारे लोग तो मौजूद हैं मगर
खिड़की से मुझको देखनेवाला चला गया

बैठा है हाथ जोड़े आँखों में एक आंसू
देखा नहीं है मैंने पूजा में यूं किसी को

ज्ञानप्रकाश विवेक

ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ

ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ

वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ

ख़ुदा का शुक्र कि मेरा मकाँ सलामत है
हैं उतनी तेज़ हवाएँ कि बस्तियाँ उड़ जाएँ

ज़मीं से एक तअल्लुक़ ने बाँध रक्खा है
बदन में ख़ून नहीं हो तो हड्डियाँ उड़ जाएँ

बिखर बिखर सी गई है किताब साँसों की
ये काग़ज़ात ख़ुदा जाने कब कहाँ उड़ जाएँ

रहे ख़याल कि मज्ज़ूब-ए-इश्क़ हैं हम लोग
अगर ज़मीन से फूंकें तो आसमाँ उड़ जाएँ

हवाएँ बाज़ कहाँ आती हैं शरारत से
सरों पे हाथ न रक्खें तो पगड़ियाँ उड़ जाएँ

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाए

राहतइन्दौरी