हिज़्र के आँसूं बहाती जा रही हैं
ये उम्र दुआँ, दवाओं पे कैसे कटे
मय्यत अभी से सजाई जा रही हैं
हर चीज़ कमरे की धुंदली हो चली
एक तस्वीर जो मुस्कुराएँ जा रही हैं
ख़ुद की आदतें भी अजीब लगती हैं
तू याद नहीं और भुलाई जा रही हैं...
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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