Tuesday, April 29, 2025

दरम्यान तेरे मेरे प्यार कैसा कुछ तो है

 ये मेरा इश्क औरों जैसा नहीं,

अकेले रहेंगे पर तेरे ही रहेंगे..!

*

कभी पढ़ो तो सही मेरी आंखों को,

यहां दरिया बहता है तेरी मोहब्बत का।

*

सामने बैठे रहो दिल को करार आयेगा

जितना देखेंगे तुम्हे, उतना ही प्यार आयेगा।

*

कुछ तो जादू है तेरे नाम में,

नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है...

*

मोहब्बत से मोहब्बत तब हुई,

जब मोहब्बत तुमसे हुई...!

*

याद नही कुछ पर याद जैसा कुछ तो है,

दरम्यान तेरे मेरे प्यार कैसा कुछ तो है।

*

आईने से पर्दा कर के देखा जाए

ख़ुद को इतना तन्हा कर के देखा जाए

हम भी तो देखें हम कितने सच्चे हैं

ख़ुद से भी इक वअ'दा कर के देखा जाए.

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

 दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

- मिर्ज़ा ग़ालिब


दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या

ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा

- साहिर लुधियानवी


तेरे विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल कि थी ख़राब और ख़राब की गई
- जौन एलिया


उस से कहियो कि दिल की गलियों में
रात दिन तेरी इंतिज़ारी है
- जौन एलिया

और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


आप जितना भी रूठो हम मना लेंगे

तेरी मोहब्बत भी किराये की घर की तरह हो गया,

जितना भी हमने सजाया पर वो अपना न हो पाया।

*

छुपाने लगा हु कुछ राज अपने आप से,

जबसे मोहब्बत हुई है हमे आप से।

*

वो वक़्त वो लम्हे कुछ अजीब होंगे,

दुनिया में हम खुश नसीब होंगे,

टूर से जब इतना याद करते है आपको,

क्या होगा जब आप हमारे करीब होंगे।

*

पत्थर के दिल में भी जगह बना लेंगे,

आप जितना भी रूठो हम मना लेंगे।

*

दीवानगी में हम कुछ कुछ ऐसा कर

मोहब्बत की सारी हदें पार कर जायेगे।

*

ये बादल भी खुशियो के बारिश ले आते है,

जब ये मोहब्बत हमे आपके करीब ले आते है।

हमारे जीवन में आपके बहुत ही मायने है

ये दिल तेरे लिए बेकरार है,

हमें बस तेरा ही इंतजार है।

*

हमें तुमसे कितना प्यार है हम नही जानते,

मगर जी नही सकते तुम्हारे बिना ये तुम नही मानते।

*

हम सिर्फ तुम्हें ही याद करते है,

रब से तुम्हें ही पाने के लिए फरियाद करते है।

*

हमारे भी जिंदगी में कुछ तो कायदे है,

हमारे जीवन में आपके बहुत ही मायने है.

*

तुम्हें पाना हमारा नसीब है,
तुम हमारे दिल के करीब है।

हम जान हार गुज़रे

दिन डूबे  हैं या डूबे बारात लिये क़श्ती

साहिंल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

*

हंस हंस के जवां दिल के

हम क्यों न चुनें टुकड़े

हर शख्स की क्रिस्मत में

ईनाम नहीं होता

*

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में

घुल जाए कोई राही

बदनाम सही लेकिन

गुमनाम नहीं होता

*
यूँ तेरी रहगुज़र से
दीवानावार गुजरे
काँधे पे अपने रख के अपना
मज़ार गुज़रे
*
बैठे हैं रास्ते में दिल का
खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक
दिन बहार गुज़रे
*
तू ने भी हम को देखा हमने
भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा
हम जान हार गुज़रे

-मीना कुमारी

तू मेरे ख्वाबों में छिपा हुआ एक तारा है

अच्छा लगता है जब कोई तुम्हें छोड़कर चलाजाता है,

कम्बख्त याद अच्छी आती है, अच्छी आती है।

*

उम्र भर तेरी चाहत में गुज़री हमने,

कैसे कहें उसे कि हम ज़िन्दगी भर तुझसे प्यार करें।

*

ज़रा ढूँढ़ तू उसे, वो बेपनाह आसमान का रंग है,

मगर तू मेरे ख्वाबों में छिपा हुआ एक तारा है

*

तेरे इंश्क़ में दिल है, तेरे लिए जान है,

वरना ऐसी क़दर तो किसी चीज़ की नहीं है।

*

'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की

तरफ़ किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया 

- वसीम बरेलवी




इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए

 मस्त नज़रों से देख लेना था अगर

तमन्ना थी आज़माने की,

हम तो बेहोश यूँ ही हो जाते क्या

ज़रूरत थी मुस्कुराने की..

*

मुझे अब तुम से डर लगने लगा है

तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या

-जौन एलिया

*

ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को

ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं

-ख़ुमार बाराबंकवी

*

इश्क़ है तो इश्क़ का

इज़हार होना चाहिए

आप को चेहरे से भी

बीमार होना चाहिए

--मुनव्वर राना

*

जबाँं खामोश मगर नज़रों में उजाला देखा

उस का इंज़हार-ए-मोहब्बत भी निराला देखा



Monday, April 28, 2025

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

जो पिछली रात से याद आ रहा है

*

आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद

बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता

*

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहाँ मातम भी होता है

*

अपने अंदाज़ का अकेला था

इस लिए मैं बड़ा अकेला था

*

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छपाएँ कैसे

तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएं कैसे.

*

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र

रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊंगा 

*

उस ने मेरी राह न देखी और

वो रिश्ता तोड़ लिया

जिस रिश्ते की खातिर मुझ

से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया

*

उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

*

दिल की बिगड़ी हुई आदत

से ये उम्मीद न थी

भूल जाएगा ये हक दिन

तिरा याद आना भी

*












ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर

 ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना

मगर फिर ख़ुद-ब-ख़ुद वो आप का गुलनार हो जाना

किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए
तुम्हारा शहर से जाना मिरा बीमार हो जाना

वो अपना जिस्म सारा सौंप देना मेरी आँखों को
मिरी पढ़ने की कोशिश आप का अख़बार हो जाना

कभी जब आँधियाँ चलती हैं हम को याद आता है
हवा का तेज़ चलना आप का दीवार हो जाना

बहुत दुश्वार है मेरे लिए उस का तसव्वुर भी
बहुत आसान है उस के लिए दुश्वार हो जाना

किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
कहीं चलने की ज़िद करना मिरा तय्यार हो जाना

कहानी का ये हिस्सा अब भी कोई ख़्वाब लगता है
तिरा सर पर बिठा लेना मिरा दस्तार हो जाना

मोहब्बत इक न इक दिन ये हुनर तुम को सिखा देगी
बग़ावत पर उतरना और ख़ुद-मुख़्तार हो जाना

नज़र नीची किए उस का गुज़रना पास से मेरे
ज़रा सी देर रुकना फिर सबा-रफ़्तार हो जाना

मुनव्वर राणा

दोस्त भी इस दोस्त से बेहतर नहीं मिलता

 मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता

दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता

ये राह-ए-तमन्ना है यहाँ देख के चलना
इस राह में सर मिलते हैं पत्थर नहीं मिलता

हमरंगी-ए-मौसम के तलबगार न होते
साया भी तो क़ामत के बराबर नहीं मिलता

कहने को ग़म-ए-हिज्र बड़ा दुश्मन-ए-जाँ है
पर दोस्त भी इस दोस्त से बेहतर नहीं मिलता

कुछ रोज़ 'नसीर' आओ चलो घर में रहा जाए
लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता

~ नसीर तुराबी

हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो' थी नहीं कुछ कम है

हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

घर की ता'मीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है

अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तिरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है

~ शहरयार

सन्ध्या लौट आना तुम

 

जाओ पर सन्ध्या के संग लौट आना तुम
चाँद की किरन निहारते न बीत जाए रात

कैसे बतलाऊँ इस अन्धियारी कुटिया में
कितना सूना पन है
कैसे समझाऊँ इन हल्की-सी साँसों का
कितना भारी मन है
कौन सहारा देगा इस दर्द दाह में बोलो
जाओ पर आँसुओं के संग लौट आना तुम
याद के चरण पखारते न बीत जाए रात

हर न सकी मेरे हारे तन की तपन कभी
घन की ठण्डी छाया
काँटों के हार मुझे पहना कर चली गई
मधु ऋतु वाली माया
जी न सकेगा जीवन बिंधे-बिंधे अंगों में
जाओ पर पतझर के संग लौट आना तुम
शूल की चुभन दुलारते न बीत जाए रात

मेरी डगमग नैया इस ढहते कूलों से
दुःख ने आ बाँधी है
मेरी आशा वाली नगरी की सीमा पर
आज बड़ी आंधी है
बह न जाए जीवन का अंचल इन लहरों में
जाओ पर पुरवा के संग लौट आना तुम
सेज की शिकन संभालते न बीत जाए रात

धूल भरे मौसम में बज न सकेगी कल तक
गीतों की शहनाई
दुपहरिया बीत चली रह न सकेगी कल तक
बालों की कजराइ
देर न करना कुछ गिनी-चुनी घड़ियाँ हैं
जाओ पर सपनों के संग लौट आना तुम
भीगते नयन उघारते न बीत जाए रात

~ सोम ठाकुर

Thursday, April 24, 2025

गले लगाए जिसे ग़म समझ में आ जाए

 समय से पहले भले ज़िंदगी की शाम आए

किसी तरह तो उदासी का घाव भर जाए

हम अब उदास नहीं सर-ब-सर उदासी हैं
हमें चराग़ नहीं रौशनी कहा जाए

जो शेर समझे मुझे दाद-वाद देता रहे
गले लगाए जिसे ग़म समझ में आ जाए

किसी के हँसने से रौशन हुई थी बाद-ए-सबा
कोई उदास हुआ तो गुलाब मुरझाए

ये एक दुख जो दबा रह गया है आँखों में
वो एक मिस्रा जिसे शे'र कर नहीं पाए

बालमोहन पांडेय

हम दिखावे की मोहब्बत नहीं करते

 बंजारे हैं रिश्तों की तिजारत नहीं करते

हम लोग दिखावे की मोहब्बत नहीं करते

मिलना है तो आ जीत ले मैदान में हम को
हम अपने क़बीले से बग़ावत नहीं करते

तूफ़ान से लड़ने का सलीक़ा है ज़रूरी
हम डूबने वालों की हिमायत नहीं करते

~नसीम निकहत 

Tuesday, April 1, 2025

तुम मिरी ज़िंदगी की आदत हो

“तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

मैं तुम्हारे ही दम से ज़िंदा हूँ
मर ही जाऊँ जो तुम से फ़ुर्सत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
और उतनी ही बे-मुरव्वत हो

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
या’नी ऐसा है जैसे फ़ुर्क़त हो

तुम हो अंगड़ाई रंग-ओ-निकहत की
कैसे अंगड़ाई से शिकायत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मिरी ज़िंदगी की आदत हो

किस लिए देखती हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूब-सूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मिरी आख़री मोहब्बत हो”

– जॉन एलिया