Wednesday, September 20, 2023

: तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है

तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है


तुझे अलग से जो सोचूँ अजीब लगता है 

जिसे न हुस्न से मतलब न इश्क़ से सरोकार 
वो शख़्स मुझ को बहुत बद-नसीब लगता है 

हुदूद-ए-ज़ात से बाहर निकल के देख ज़रा 
न कोई ग़ैर न कोई रक़ीब लगता है 

ये दोस्ती ये मरासिम ये चाहतें ये ख़ुलूस 
कभी कभी मुझे सब कुछ अजीब लगता है 

उफ़ुक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा 
मुझे चराग़-ए-दयार-ए-हबीब लगता है 

Jaan Nisar Akhtar

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