ये कैंचियाँ हमें उड़ान से खाक रोकेंगी,
कि हम पैरों से नही, हौसलों से उड़ते है।
वो चाहता था कि कासा खरीद ले मेरा,
मैं उसके ताज की कीमत लगा के लौट आया ।
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारा हाथ मेरे साथ में रहें,
शाखों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम,
आँधी से कोई कह दे कि औकात में रहे।
रोज़ पत्थर कि हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,
रोज़ शीशों से कोई काम निकल आता है।
No comments:
Post a Comment