Saturday, December 18, 2021

सर्दी में दिन सर्द मिला

सर्दी में दिन सर्द मिला 


हर मौसम बेदर्द मिला 


ऊँचे लम्बे पेड़ों का 


पत्ता पत्ता ज़र्द मिला 


सोचते हैं क्यूँ ज़िंदा हैं 


अच्छा ये सर-दर्द मिला 


हम रोए तो बात भी थी 


क्यूँ रोता हर फ़र्द मिला 

Tuesday, December 7, 2021

मैं तो वही हूँ

तुमने नही पहचाना, तो क्या हुआ
मै तो अभी भी वही हूँ।
तुम बदल गए, तो क्या हुआ
मै तो अभी भी वही हूँ।
बस! मेरे अल्फाज़ो ने मुझसे कहा,
अब तू बना ऐसी पहचान कि,
लोग कहे कि,अरे! तुम तो वही हो ॥

उसकी मोहब्बत मेरे लिए

उसकी मोहब्बत मेरे लिए नशा
उसका गुस्सा मेरे लिए सजा,
उसकी उड़ती जुल्फें और मेरा कंधा
वो इतनी पावन जैसे कल -कल करती गंगा,

उसकी आंखें दरिया सी गहरी
ओर में मांझी बीच मझधार में फंसी नैया का,
वो बरसाने की राधा गोरी,
और मैं सावला अपनी यशोदा मैया का

वह जैसे कड़कती ठंड में चाय की प्याली सी,
वह जैसे बसंत ऋतु में फैली हरियाली सी,
वह जैसे अमावस की रात में पूनम का चंद्रमा
वह जैसे रोते हुए बच्चे को हसाती प्यारी मां

यह सब पुरानी बात है आज की नहीं
दिल खोल कर सब बोल दिया अब कुछ भी राज नहीं
ऐसा नहीं कि अब उसकी चाहत नहीं मुझे,
पर मेरी मोहब्बत अब उसके इश्क के ताज के मोहताज नहीं

ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के

ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के खास बनना चाहते हैं।
हमारे कन्धे पर सर रख कर कोई खुद को महफूज समझे।
बस किसी के लिए वही जनाब बनना चाहते हैं।
ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के खास बनना चाहते हैं।
जब तन्हाई परेशानी और इस दुनिया की भीड़ से कोई ऊब जाए ।
ऐसे में किसी के लिये शकुन की बरसात बनना चाहते हैं ।
ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के खास बनना चाहते हैं।

तुम्हारी हर बात तुमसे कहेंगे

तुम्हारी हर बात तुमसे कहेंगे,
तुम इश्क करो या नफरत,
हर सितम सहेंगे ।
तुम बदल गए,
यह तुम्हारी फितरत है,
हम कभी नहीं बदला करेंगे ।
दिल है, कोई खिलौना नहीं ,
जो खेला और तोड़ दिया ,
तुम तोड़ते रहो ,
हम जोड़ते रहेंगे ।
अहम तुम मे है,
तो अहम् मुझमें भी है ,
मगर झुकते हैं हम,
क्योंकि इश्क इबादत है ।
क्योंकि इश्क इबादत है ।।

खुदा भी तुझसे नाराज हुआ तो होगा

बिछड़ के मुझसे आंसू तेरा भी गिरा तो होगा 
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उठ-उठ कर रातों में मुझे याद किया तो होगा ।
तेरा दिल धड़कता था मेरे दिल के साथ 
अब तेरा दिल भी तुझसे रुठा तो होगा।
यूँ तो कोई किसी के बिना मरता नहीं है 
लेकिन कुछ दिन तू भी मर-मर के जिया तो होगा।
जो तुमने तोड़ दिया तो करूँ क्या इसका गिला
टुटे दिल को जोड़ के फिर से जीना तो होगा।
सुना है कि मासूम दिल खुदा का घर होता है
फिर तो खुदा भी तुझसे नाराज हुआ तो होगा ।

जरूरी तो नहीं

जीवन रंगीन हो जरूरी तो नहीं,
खुशियाँ बेशुमार हो जरूरी तो नहीं,
सपने सारे पूरे हो जरूरी तो नहीं,
माना लोगो में अंतर बहुत है,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।

कौन कहता हैं सब अपने नहीं,
मन से साथ में बैठ तो सही,
बहुत कर ली बातें दूसरो से,
एक अपनी आत्मा से करके देख तो सही,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं,

आदमी अनेक, रिश्ते अनेक ,
खून के रिश्तों में परिवर्तन अनेक,
सब के मन से मन मिले जरूरी नहीं,
पर हर बातो को दिल मे रखना जरुरी नहीं,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।

हा माना तकलीफ होती हैं,
रिश्तो के टूटने पे,
सब कुछ मन का मिल जाये ,
तो शिकायत की जरूरत ही नहीं,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।

दिल से दिल मिलते हैं,
पर मन से मन मिले जरूरी तो नही,
कुछ बाते मन मे ही अधूरी हो,
हर बातो को बयां कर देना जरूरी तो नही,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नही।

Sunday, December 5, 2021

अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला


अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला 
हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला 

एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा 
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला 

उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मा'लूम न था 
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला 

दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में 
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला 

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया 
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला

Nida Fazli 

Thursday, December 2, 2021

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो 
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में 
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो 

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है 
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है 
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो

साहिर लुधियानवी

 


तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो  

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में  
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो  

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है  
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो  

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है  
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो 

Wednesday, December 1, 2021

कैफ़ी आज़मी: चुनिंदा शेर

तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता
मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं 

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा 

रह गई ज़िंदगी दर्द बन के
दर्द दिल में छुपाए छुपाए 

अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं 

मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे 
हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ 

वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द
दाद-ए-सुख़न मिली मुझे तर्क-ए-सुख़न के बा'द 

दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गए मेहरबान साए 

जहाँ से पिछले पहर कोई तिश्ना-काम उठा
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने

छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल
वहीं से धूप ने तलवे जलाए हैं क्या क्या 

आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते

हसरत मोहानी: 

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते
कि दिल रह गया मुद्दआ कहते कहते

मिरा इश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़ हो चला है
तिरे हुस्न को बेवफ़ा कहते कहते

शब-ए-ग़म किस आराम से सो गए हैं
फ़साना तिरी याद का कहते कहते

ये क्या पड़ गई ख़ू-ए-दुश्नाम तुम को
मुझे ना-सज़ा बरमला कहते कहते

ख़बर उन को अब तक नहीं मर मिटे हम
दिल-ए-ज़ार का माजरा कहते कहते

अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़
बुरा सुनते सुनते बुरा कहते कहते

वो आए मगर आए किस वक़्त 'हसरत'
कि हम चल बसे मरहबा कहते कहते

चाँदनी-रात थी सर्द हवा से खिड़की बजती थी

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था 
महके हुए दिन-रात थे मेरे और दिसम्बर था 

चाँदनी-रात थी सर्द हवा से खिड़की बजती थी 
उन हाथों में हाथ थे मेरे और दिसम्बर था 

बारिश की बूंदों से दिल पे दस्तक होती थी 
सब मौसम बरसात थे मेरे और दिसम्बर था 

भीगी ज़ुल्फ़ें भीगा आँचल नींद थी आँखों में 
कुछ ऐसे हालात थे मेरे और दिसम्बर था 

धीरे धीरे भड़क रही थी आतिश-दान की आग 
बहके हुए जज़्बात थे मेरे और दिसम्बर था 

प्यार भरी नज़रों से 'फ़रह' जब उस ने देखा था 
बस वो ही लम्हात थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद