Wednesday, March 31, 2021

ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में

ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में
भीक के उजालों से रौशनी नहीं होती

~ हस्तीमल हस्ती


शायरी है सरमाया ख़ुश-नसीब लोगों का 
बाँस की हर इक टहनी बाँसुरी नहीं होती 

खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो 
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती 

हस्तीमल हस्ती

दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती 
इतनी ख़ूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती 

दोस्त पे करम करना और हिसाब भी रखना 
कारोबार होता है दोस्ती नहीं होती 

ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में 
भीक के उजालों से रौशनी नहीं होती 

हस्तीमल हस्ती

छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ
अपना तो सब के हाथों ख़सारा बहुत हुआ

क्या बे-सबब किसी से कहीं ऊबते हैं लोग
बावर करो कि ज़िक्र तुम्हारा बहुत हुआ

मिलने दिया न उस से हमें जिस ख़याल ने
सोचा तो इस ख़याल से सदमा बहुत हुआ

#अहमद_महफ़ूज़

ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया
कि लौ चिराग़-ए-दर्द की बढ़ा बढ़ा के चल दिया

न दीद की उमीद अब न लुत्फ़-ए-नग़्मा-ए-विसाल
कि लय वो साज़-ए-हिज्र की बढ़ा बढ़ा के चल दिया

वो आया 'अकबर' इस अदा से आज मेरे सामने
कि इक झलक सी ख़्वाब की दिखा दिखा के चल दिया

अकबर हैदराबादी

मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख भी बदल गए
तेरा हाथ हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गए !!
अज्ञात

शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता
इन पत्थरों की आँख में जल क्यूँ नहीं होता

क़ुदरत के उसूलों में बदल क्यूँ नहीं होता
जो आज हुआ है वही कल क्यूँ नहीं होता

हर गाँव में मुम्ताज़ जनम क्यूँ नहीं लेती
हर मोड़ पे इक ताज-महल क्यूँ नहीं होता

हस्तीमल हस्ती



Monday, March 29, 2021

रंग / होली शायरी

रंग चेहरे का ज़ाफ़रानी है
आशिक़ी की यही निशानी है
- अज्ञात

हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंग
ये किस ने पैरहन अपना उछाल रक्खा है
- अहमद फ़राज़ 

वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के बाद
कभी न फिर नए कपड़े पहन के निकला मैं
- अनवर शऊर

रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए
दर्द फूलों की तरह महके अगर तू आए
- ज़िया जालंधरी

अंग अंग से रंग रंग के फूल बरसते देखे कौन
रंग रंग से शोले बरसे कैसे बरसे सोचे कौन
- अहमद ज़फ़र


मुख़्तलिफ़ हैं मिरी बहार के रंग
कुछ मिरे अपने कुछ उधार के रंग
- नीना सहर

कौन सा रंग इख़्तियार करें?
ख़ुद को चाहें कि तुझ से प्यार करें?
- शबनम रूमानी

रंग ख़ुशियों के कल बदलते ही
ग़म ने थामा मुझे फिसलते ही
- अनीता मौर्या अनुश्री

समझ लेना कि होली है

महा कवि नीरज की कविता..

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂

करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है
 हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है

 किसी को याद करते ही अगर बजते सुनाई दें 
 कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि होली है 

 कभी खोलो अचानक , आप अपने घर का दरवाजा 
 खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि होली है 

 तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें 
 उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है 

 हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल 
 अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है 

 बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की 
 जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है 

 अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो 'नीरज' 
 हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि होली है

बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूं करें हम

नया इक रिश्ता पैदा क्यूं करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूं करें हम

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूं करें हम

ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफ़ा-दारी का दावा क्यूं करें हम

वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूं करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यूं करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूं करें हम

किया था अहद जब लम्हों में हम ने
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूं करें हम

नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूं करें हम

Thursday, March 25, 2021

हो भी आराम तो कह दूँ मुझे आराम नहीं

हाथ रख कर जो वो पूछे दिल-ए-बेताब का हाल
हो भी आराम तो कह दूँ मुझे आराम नहीं
~ दाग़ देहलवी

वो आके पहलू में ऐसे बैठे के 
शाम रंगीन हो गई है ;  
ज़रा ज़रा सी खिली तबीयत ज़रा सी 
ग़मगीन हो गई है ....!!💥
#गुलज़ार

आए थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते 
इक आग सी वो और लगा कर चले गए 
जिगर मुरादाबादी

आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें 
दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की

दिले-बेताब को आराम तो है पर चैन कहाँ ,
वो आए भी अगर है तो जाने के लिए -'
दामन' भोपाली

अगर अपने दिल-ए-बेताब को समझा लिया मैं ने
तो ये काफ़िर निगाहें कर सकेंगी इंतिज़ाम अपना
जहान-ए-इश्क़ में ऐसे मक़ामों से भी गुज़रा हूँ
कि बाज़-औक़ात ख़ुद करना पड़ा है एहतिराम अपना
#महशर_इनायती

हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे,
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना..!
~दाग़_देहलवी

लेने नहीं देता किसी करवट मुझे आराम
इक शख़्स हटीला मिरे अंदर कोई मुझ सा
ख़ुर्शीद रिज़वी


आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले 
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले.
- दाग़ देहलवी.

उनकी फरमाइश नई दिन रात है,
और थोड़ी सी मेरी औकात है..।।
~ दाग़ दहेलवी

मैं तो हूँ चाकरी पर इश्क़ की
वो पूछे है तुझे कुछ काम नहीं?
हर आहट पर गए दहलीज़ तक
उसका मगर कोई पयाम नहीं
किश्तों में गुज़ा किया है ख़ुद को
इश्क़ महंगा बहुत है, बे-दाम नहीं


रात भी नींद भी कहानी भी 
हाए क्या चीज़ है जवानी भी 
~ फ़िराक़ गोरखपुरी 🌻🌻



Tuesday, March 16, 2021

आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें

आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें 
दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की 
~ जलील मानिकपूरी

Monday, March 15, 2021

काहे को ब्याहे बिदेस

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे खूंटे की गैया
जित हांके हंक जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलिया
घर-घर मांगे हैं जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

कोठे तले से पलकिया जो निकली
बीरन में छाए पछाड़
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियां
भोर भये उड़ जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोड़ी
छूटा सहेली का साथ
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

डोली का पर्दा उठा के जो देखा
आया पिया का देस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे

अमीर खुसरो 

राही मासूम रज़ा शायरी

रात ने ऐसा पेँच लगाया टूटी हाथ से डोर
आंगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चांद

हाए इस परछाइयों के शहर में
दिल सी इक ज़िंदा हक़ीक़त खो गई

ऐ सबा तू तो उधर ही से गुज़रती होगी
उस गली में मिरे पैरों के निशां कैसे हैं

हां उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें
वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं

यादों से बचना मुश्किल है उन को कैसे समझाएं
हिज्र के इस सहरा तक हम को आते हैं समझाने लोग

ऐ आवारा यादो फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहां
हम ने तो सहरा में बसर की तुम ने गुज़ारी रात कहां

कहानियों की गुज़रगाह पर भी नींद नहीं
ये रात कैसी है ये दर्द जागता क्यूं है

रास्ते अपनी नज़र बदला किए
हम तुम्हारा रास्ता देखा किए

हर तरफ़ सुब्ह ने इक जाल बिछा रक्खा है
ओस की बूंद कहां जाती है दरिया की तरफ़

दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
ख़्वाबों के बादल आते हैं लेकिन आग बरसती है

Thursday, March 11, 2021

डाॅ. कुंवर बेचैन शायरी

राहों से जितने प्यार से मंज़िल ने बात की 
यूँ दिल से मेरे आप के भी दिल ने बात की 

हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए 
ज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए

ये लफ़्ज़ आइने हैं मत इन्हें उछाल के चल 
अदब की राह मिली है तो देख-भाल के चल 

शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई सी तुम 
ज़िंदगी है धूप, तो मद-मस्त पुर्वाई सी तुम

चाहे महफ़िल में रहूँ चाहे अकेले में रहूँ 
गूँजती रहती हो मुझ में शोख़ शहनाई सी तुम 

मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यूँ डर रखूँ 
ज़िंदगी आ तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ 

बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो 
बस एक तुम पे नज़र है हमारे साथ रहो 

कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई 
आप कहियेगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई

अपनी सियाह पीठ छुपाता है आइना 
सब को हमारे दाग़ दिखाता है आइना 

आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े 
इतना कह के ऊँची शाख़ों से कई फल गिर पड़े 

सुनो अब यूँ ही चलने दो न कोई शर्त बाँधो 
मुझे गिर कर सँभलने दो न कोई शर्त बाँधो 

उँगलियाँ थाम के ख़ुद चलना सिखाया था जिसे 
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे 

Wednesday, March 10, 2021

आपका काम है मनाते रहिये!

आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक 
गुज़रा है जो कुछ हम पर तुम ने भी सुना होगा 
~ दिल शाहजहाँपुरी

अब तो जो मुझपे गुज़रती है गुज़र जाने दो।
मौत अंजाम-ए-मोहब्बत है तो मर जाने दो।।

दिल जिधर जाऐ, उधर जाने दो ।
ये भी एक दोर है, ये दोर गुज़र जाने दो।।

मेरे दामन का भी कुछ हक़ है, गुलिस्तां वालों।
न सही फूल, इसे कांटों ही से भर जाने दो।।

आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है
जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है

जिगर मुरादाबादी

 औरों की मोहब्बत के दोहराएं हैं अफ़साने
बात अपनी मोहब्बत की होंठों पे नहीं आई
      सूफ़ी तबस्सुम

देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के 
आग़ाज़ भी रुस्वाई अंजाम भी रुस्वाई 

सूफ़ी तबस्सुम

अब कोई ग़म-गुसार हमारा नहीं रहा
दुनिया को ए'तिबार हमारा नहीं रहा

इस फ़र्त-ए-ग़म में ख़ून के आँसू टपक पड़े
अब दिल भी राज़दार हमारा नहीं रहा

- दिल शाहजहाँपुरी

जिंदगी दर्द की तस्वीर न बनने पाए. 
बोलते रहिये जरा हँसते हँसाते रहिये.
रूठना भी है हसीनों की अदा में शामिल. 
आपका काम है मनाते रहिये! 


औरतों का हक़/ज़ज्बा शायरी

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया


तुलती है कहीं दीनारों में बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में


ये वो बे-इज़्ज़त चीज़ है जो बट जाती है इज़्ज़त-दारों में
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे,
क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं,


तुझमें शोले भी हैं बस अश्क़ फिशानी ही नहीं,
तू हक़ीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं,


तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं,
अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे,
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तेरे माथे पे ये आंचल तो बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था


लड़कियां मांओं जैसा मुकद्दर क्यों रखती है
तन सहरा और आंख समंदर क्यों रखती हैं


औरतें अपने दुख की विरासत किसको देंगी
संदूकों में बंद यह ज़ेवर क्यों रखती हैं


वह जो आप ही पूजी जाने के लायक़ थीं
चम्पा सी पोरों में पत्थर क्यों रखती हैं


वह जो रही हैं ख़ाली पेट और नंगे पांव
बचा बचा कर सर की चादर क्यों रखती हैं


बंद हवेली में जो सान्हें हो जाते हैं
उनकी ख़बर दीवारें अकसर क्यों रखती हैं


सुबह ए विसाल किरनें हम से पूछ रही हैं
रातें अपने हाथ में ख़ंजर क्यों रखती हैं

वो जिस ने अश्कों से हार नहीं मानी
किस ख़ामोशी से दरिया में डूब गई
शहर बहरा है लोग पत्थर हैं
अब के किस तौर इंक़लाब उतरे

कूल्हों में भंवर जो हैं तो क्या है
सर में भी है जुस्तुजू का जौहर
था पारा-ए-दिल भी ज़ेर-ए-पिस्तां
लेकिन मिरा मोल है जो इन पर
घबरा के न यूं गुरेज पा हो
पैमाइश मेरी खत्म हो जब
अपना भी कोई उज़्व नपो

कव्वे भी अंडे खाने के शौक़ को अपने
फ़ाख़्ता के घर जा कर पूरा करते हैं
लेकिन ये वो सांप हैं जो कि
अपने बच्चे ख़ुद ही चट कर जाते हैं
कभी कभी मैं सोचती हूं कि
सांपों की ये ख़सलत
मालिक-ए-जिंन-ओ-इन्स की, इंसानों के हक़ में
कैसी बे-पायां रहमत है!

गए बरस कि ईद का दिन क्या अच्छा था
चाँद को देख के उस का चेहरा देखा था
फ़ज़ा में ‘कीट्स’ के लहजे की नरमाहट थी
मौसम अपने रंग में ‘फ़ैज़’ का मिस्रा था



आँखों से रिसते पानी की बात बतानी मुश्किल है

आँखों से रिसते पानी की बात बतानी मुश्किल है 
पार समुंदर जाने वाले प्रीत निभानी मुश्किल है 

रातों रात निकाली तुम ने दूर निकलने की सूरत 
फिर कहते हो तुम से तो उम्मीद लगानी मुश्किल है 

सब सपनों को आग लगा कर कहते हो आबाद रहो 
जान-ए-जानाँ अब क़िस्मत में रंग-फ़िशानी मुश्किल है 

थोड़ा रुक कर तलब करो तुम सब हालात सुनाऊँगी 
रोते रोते टूटे दिल की हाल-बयानी मुश्किल है 


Monday, March 8, 2021

मैं पल दो पल का शायर हूं

मैं पल दो पल का शायर हूं पल दो पल मिरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मिरी जवानी है
मुझ से पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए कुछ नग़्मे गा कर चले गए

वो भी इक पल का क़िस्सा थे मैं भी इक पल का क़िस्सा हूं
कल तुम से जुदा हो जाऊंगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूं
पल दो पल में कुछ कह पाया इतनी ही सआ'दत काफ़ी है
पल दो पल तुम ने मुझ को सुना इतनी ही इनायत काफ़ी है

कल और आएंगे नग़्मों की खिलती कलियां चुनने वाले
मुझ से बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महंगी मुद्रा है जो क़तरा क़तरा बटती है

सागर से उभरी लहर हूं मैं सागर में फिर खो जाऊंगा
मिट्टी की रूह का सपना हूं मिट्टी में फिर सो जाऊंगा
कल कोई मुझ को याद करे क्यूं कोई मुझ को याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिए क्यूं वक़्त अपना बरबाद करे

Thursday, March 4, 2021

रात की याद सपनों का साथ

रात की याद सपनों का साथ, पीछे थे हम आगे थी मंजिल की शुरुआत।
सवेरे का बांग, दिन की मुस्कान, मंजिल तो बस कुछ दूर पर साथ।
रास्ते में बदनामी पत्थरों की पहचान, सपनों से मुलाकात जिंदगी की शुरुआत।
पतवारों को मोड़ लहरों को सांभाल, आगे है दिन तो पीछे स्वप्न सजी शाम।
किस्मत की राह नियति से बंधी, खोल बाजुओं का बल बांध सपनों की कड़ी।
नामुमकिन की खोज मुमकिन से मिली, बस ‘न’ तो है स्वप्न, मुमकिन है सभी।
धुंए का धाक, आंखों का भ्रम, मोड़ हैं सम्भव जरूर रास्ते हैं कठिन।
सपनों के पंख की सुंदरता बेमिसाल, हर पंथ पर बिछी आपकी कामयाबी की मिसाल।

Wednesday, March 3, 2021

बेचैनी सी है आजकल

बेचैनी सी है आजकल
सबके दिल में
कोई नहीं है चैन से
आजकल महफिल में ।

मंजिल को पा लेने की
एक छटपटाहट सी है
सबकुछ निमित है फिर भी
एक बेचैनी सी है ।

परिन्दे घर आयेंगे सही
साम होने तो दो
अभी दिन ढला नहीं
बेचैन तो न हो ।

चैन से कटेगी जिन्दगी
बेखौफ रहा करो
बेजार नहीं ये जिन्दगी
बेचैन तो न हो ।

पल दो पल मे यहाँ क्या हो
किसको है खबर
बेचैन क्यों ये जिन्दगी
सब पर खुदा की रहमत ।

अपने बस केवल बंदगी
सब उसके हवाले कर
कर्मरत हो कर्म कर
बेचैन तो न हो ।

नक़ाब, हिजाब शायरी

इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
जिगर मुरादाबादी

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
दाग़ देहलवी


आंखें ख़ुदा ने दी हैं तो देखेंगे हुस्न-ए-यार
कब तक नक़ाब रुख़ से उठाई न जाएगी
जलील मानिकपुरी

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई

हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ायब
ये किस ख़राबे में दुनिया ने ला के छोड़ दिया
शहज़ाद अहमद

देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
हम तो अपने हैं मियां ग़ैर से शरमाया कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तेरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर संभल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी

तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया
हफ़ीज़ जालंधरी

ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हम को
गांव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
बेदिल हैदरी

चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अंधेरा है
साग़र सिद्दीक़ी

जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
क़यामत वही तो उठाए हुए हैं
हफ़ीज़ बनारसी

इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता
कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूं
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी

Tuesday, March 2, 2021

वो धूप की नरम रज़ाई है

मुझसे मिलने आयी है
वो धूप की नरम रज़ाई है
ताज़ा गुलाब लाया हूँ
खुद पहनोगी या पहना दूं मैं
ये दिल की ख्वाहिश आई है
वह पगली लड़की आई है

माना कि कबसे रूठी है
मन की थोड़ी कच्ची है
मैं कान्हा हो तुम राधे
खुद मानोगी या मनाऊँ मैं
प्रस्ताव मनमोहन की आई है
वह पगली लड़की आई है

शहद से मीठी, इमली से खट्टी
खुद केसर, चंदन, रसमलाई है
कैसे रिझाऊं, कैसे समझाऊं तुम्हें
खालोगी या खिलाऊं मैं
फिर भी तोहर लई एक चॉकलेट लाई है
वह पगली लड़की आई है

जिसकी सखियां हैं बादल
जिसके रोएं खरगोशी हैं
जो रेशम की खुद कढ़ाई है
लेकिन फिर भी एक टेढ़ी लाया हूं
खेलोगी, या खेलाऊं मैं
प्रीत की रसम निभाई है
वह पगली लड़की आई है

सब कुछ खो सा जाता है

जब फ़ुरसत से बैठकर वो बातें याद करते हैं
यूँ मायूस सा होकर मेरा दिल रो सा जाता है
सब कुछ खो सा जाता है

बात करते-करते कह जाना सब कुछ
फिर मैंने क्या कहा
ये कुछ चुभ सा जाता है
सब कुछ खो सा जाता है

वो हंसी वादे सब झूठे से लगते हैं
याद करते-करते सब कुछ मिट सा जाता है

जा मुकर जा तू भी बातों से अपनी
पहाड़ों को देख हवाओं का रुख मुड़ सा जाता है

जब फ़ुरसत से बैठकर वो बातें याद करते हैं
यूँ मायूस सा होकर मेरा दिल रो सा जाता है
सब कुछ खो सा जाता है