अब सपनों को उगाने वाली मिट्टी नही,
बल्कि आंसुओं से बना हुआ कीचड़ हूँ मैं...
उसकी खुशी की खातिर,
अपना सब कुछ लुटा कर बर्बाद हो गया,
फिर भी वो कहती है,
कि इश्क़ में, लीचड़ हूँ मैं....!!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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