आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
किसी सहरा में महकता गुलिस्ताँ न हो जाऊँ!
हर ऐब सुधार लूँ तो फ़रिश्ता न हो जाऊँ!!
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