आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
शाम भी थी धुआँ-धुआँ हुस्न भी था उदास-उदास, याद सी आके रह गयीं दिल को कई कहानियाँ।
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