तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गाँव को गँवार कहता है।
थक गया है हर शख़्स काम करते करते,
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।
गाँव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास,
तेरी सारी फुरसत तेरा इतवार कहता है।
~ अज्ञात
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment