आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
सोते हर रात हैं पर एक अरसा गुज़र गया वो बेफ़िक्री की चादर नहीं ओढ़ी जो बचपन में माँ ओढ़ा दिया करतीं थीं।
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