आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
दुश्मनी हो जाती है मुफ़्त में सैकड़ों से 'साहेब', इंसान का 'बेहतरीन' होना भी गुनाह है!
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