आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
गुनाह किये होते, तो मांफ भी हो जाते साहिब; ख़ता तो मुझसे ये हुई, कि उनसे इश्क़ हो गया।
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