आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ज़िन्दगी ये तेरी खरोंचे हैं मुझ पर, या; फिर तू मुझे तराशने की कोशिश में है।
Post a Comment
No comments:
Post a Comment