Thursday, March 10, 2022

सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं

इल्म भी आज़ार लगता है मुझे
आदमी अख़बार लगता है मुझे
~ अहमद सोज़
मिरे क़बीले में ता'लीम का रिवाज न था 
मिरे बुज़ुर्ग मगर तख़्तियाँ बनाते थे 
~ लियाक़त जाफ़री
यही जाना कि कुछ न जाना हाए 
सो भी इक उम्र में हुआ मालूम 
~ मीर तक़ी मीर
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो 
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं 
~ ख़ुमार बाराबंकवी
थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम' 
दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया 
~ अब्दुल हमीद अदम

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