Thursday, March 10, 2022

थकन से राह में चलना मुहाल भी है मुझे

थकन से राह में चलना मुहाल भी है मुझे 

कमाल पर भी था मैं ही ज़वाल भी है मुझे 

सड़क पे चलते हुए रुक के देखता हूँ मैं 
यहीं कहीं है तू ये एहतिमाल भी है मुझे 

ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक 
मैं ख़्वाब में तो हूँ लेकिन ख़याल भी है मुझे 

उसी के लुत्फ़ से मरने से ख़ौफ़ आता है 
उसी के डर से ये जीना मुहाल भी है मुझे


सवाद-ए-शाम-ए-सफ़र है जला जला सा 'मुनीर' 
ख़ुशी के साथ अजब सा मलाल भी है मुझे

मुनीर नियाज़ी

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