आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
उसे क्या देखा, खुद को ही भूल गए हम इस क़दर, कि अपने ही घर जो आये तो औरों से पता पूछकर!
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