आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
इश्क़ होना भी लाज़मी है शायरी लिखने के लिए वर्ना, कलम ही लिखती तो हर दफ्तर का बाबू ग़ालिब होता!
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