Wednesday, October 30, 2024

दीवाली की रात आई है तुम दीप जलाए बैठी हो

दीवाली की रात आई है तुम दीप जलाए बैठी हो
मासूम उमंगों को अपने सीने से लगाए बैठी हो

तस्वीर को मेरी फूलों की ख़ुशबू में बसाए बैठी हो
आँखों के नशीले डोरों पर काजल को बिठाए बैठी हो

मैं दूर कहीं तुम से बैठा इक दीप की जानिब तकता हूँ
इक बज़्म सजाए रक्खी है इक दर्द जगाए रखता हूँ

ख़ामोशी मेरी साथी है और देखने वाला कोई नहीं
ऐ काश कहीं से आ जाते जीने का बहाना कोई नहीं 

वसीम बरेलवी

Monday, October 21, 2024

भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को,

भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को ।

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को ।

शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को ।

पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है,
इस अहद की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को ।

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मुक्तिकामी चेतना, अभ्यर्थना इतिहास की ।
ये समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की ।

आप कहते हैं जिसे इस देश का स्वर्णिम अतीत,
वो कहानी है महज़ प्रतिशोध की, संत्रास की ।

यक्ष-प्रश्नों में उलझकर रह गई बूढ़ी सदी,
ये प्रतीक्षा की घड़ी है क्या हमारी प्यास की ।

इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आख़िर क्या दिया,
सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फ़ास की ।

याद रखिए यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार,
होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की ।

अदम गोंडवी




तेरी चाहत का बस इक इशारा सही

तेरी चाहत का, बस इक, इशारा सही।

डूबते को तो, तिनके का, सहारा सही।।

प्रीत को, इक बार, बयां करना जरूर।

रोक लेना न तुम दिल में दोबारा कहीं।।

यूँ ही नहीं मिलते है, धरा पर कोई।

खुदा को नहीं, जब तक, गवारा सही।।

फूल खिलने की, भी तो, वजह है यहाँ।

जरा समझो, कुदरत का, नजारा सही।।

तेरी दुनिया के, होंगे, कई तलबगार।

मुझ सा न होगा, लेकिन, तुम्हारा सही।।

सोचता हूँ प्यार करना चाहिए

रंग इस मौसम में भरना चाहिए

सोचती हूँ प्यार करना चाहिए

ज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्ते
रोज़ जीना रोज़ मरना चाहिए

दोस्ती से तजरबा ये हो गया
दुश्मनों से प्यार करना चाहिए

प्यार का इक़रार दिल में हो मगर
कोई पूछे तो मुकरना चाहिए

अंजुम रहबर

Saturday, October 19, 2024

ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई

 ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई

हाँ लुत्फ़ जब है पा के भी ढूँढ़ा करे कोई

तुम ने तो हुक्म-ए-तर्क-ए-तमन्ना सुना दिया
किस दिल से आह तर्क-ए-तमन्ना करे कोई

दुनिया लरज़ गई दिल-ए-हिरमाँ-नसीब की
इस तरह साज़-ए-ऐश न छेड़ा करे कोई

मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई

रंगीनी-ए-नक़ाब में गुम हो गई नज़र
क्या बे-हिजाबियों का तक़ाज़ा करे कोई

या तो किसी को जुरअत-ए-दीदार ही न हो
या फिर मिरी निगाह से देखा करे कोई

होती है इस में हुस्न की तौहीन ऐ 'मजाज़'
इतना न अहल-ए-इश्क़ को रुस्वा करे कोई

मजाज़ लखनवी

कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए

कुछ ऐसे रास्तों से इश्क़ का सफ़र जाए
तुम्हारा हिज्र बहुत दूर से गुज़र जाए

उदासियों से भरी कच्ची उम्र की ये नस्ल
जो शायरी न करे तो दुखों से मर जाए

पचास लोगों से वो रोज़ मिलती है और मैं
किसी को देख लूँ तो उस का मुँह उतर जाए

घटा छटे तो दिखे चाँद भी सितारे भी
जो तुम हटो तो किसी और पर नज़र जाए

हज़ार साल में तय्यार होने वाला मर्द
उस एक गोद में सर रखते ही बिखर जाए

मैं उस बदन से सभी पैरहन उतारूँ और
अंधेरा जिस्म पे कपड़े का काम कर जाए

मेरी हवस को कोई दूसरा मयस्सर हो
तुम्हारा हुस्न किसी और से सँवर जाए

कुशल दौनेरिया

Friday, October 11, 2024

यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए

 ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया

मार डाला मरने वाले को कि अच्छा कर दिया

जब तिरा ज़िक्र आ गया हम दफ़अतन चुप हो गए
वो छुपाया राज़-ए-दिल हम ने कि इफ़शा कर दिया

किस क़दर बे-ज़ार था दिल मुझ से ज़ब्त-ए-शौक़ पर
जब कहा दिल का किया ज़ालिम ने रुस्वा कर दिया

यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया

दर्दमंदान-ए-अज़ल पर इश्क़ का एहसाँ नहीं
दर्द याँ दिल से गया कब था कि पैदा कर दिया

दिल को पहलू से निकल जाने की फिर रट लग गई
फिर किसी ने आँखों आँखों में तक़ाज़ा कर दिया

रंज पाया दिल दिया सच है मगर ये तो कहो
क्या किसी ने दे के पाया किस ने क्या पा कर दिया

बच रहा था एक आँसू-दार-ओ-गीर-ए-ज़ब्त से
जोशिश-ए-ग़म ने फिर इस क़तरे को दरिया कर दिया

'फ़ानी'-ए-महजूर था आज आरज़ू-मंद-ए-अजल
आप ने आ कर पशीमान-ए-तमन्ना कर दिया

फ़ानी बदायूंनी

Thursday, October 10, 2024

पुर-ख़ार राह में कोई साया नहीं मिला

पुर-ख़ार राह में कोई साया नहीं मिला
ताउम्र ज़िन्दगी में सहारा नहीं मिला

दरिया मिला कहीं न कहीं आबशार ही
मंजर कहीं सफ़र में सुहाना नहीं मिला

हमको तलाश थी कि कोई मरहला मिले
लेकिन जहां में कोई ठिकाना नहीं मिला

दावा तो ज़ोर शोर से उसने किया मगर
पैकर मुझे जनाब वो सच्चा नहीं मिला

हसरत से ताकता था थीं नज़रें टिकी हुईं
मासूम को मगर वो खिलौना नहीं मिला

जन्नत कहा जिसे वो है नायाब वाक़ि'ई
ढूंढा बहुत मगर मुझे रस्ता नहीं मिला

दावे किए गए हैं सियासत में बारहा
ईमान पर मगर कोई चलता नहीं मिला

उम्मीद बरकरार है छोड़ी नहीं अभी
साबित करूं वजूद वो मौका नहीं मिला

मुद्दत से है तलाश कोई हमसफ़र मिले
त्यागी मगर जहान में अपना नहीं मिला

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए

चाँदनी रातों में इक इक फूल को
बे-ख़ुदी कहती है सज्दा कीजिए

जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए

इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए

पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बे-ख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए

हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए

आप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमें
आप ही इस का मुदावा कीजिए

कहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेर
इस तरह हम को न रुस्वा कीजिए

अख़्तर शीरानी

तेरी यादों से सींच लेते हैं

सूखते ही ख़्याल की डाली,

तेरी यादों से सींच लेते हैं ।
बाकी रह जाए याद में बाकी,
अपनी तस्वीर खींच लेते हैं ।

बहुत पता है तुम्हें छोड़ जाना आता है

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

मिरे अज़ीज़ को हर इक बहाना आता है

ज़रा सा मिल के दिखाओ कि ऐसे मिलते हैं
बहुत पता है तुम्हें छोड़ जाना आता है

सितारे देख के जलते हैं आँखें मलते हैं
इक आदमी लिए शम-ए-फ़साना आता है

अभी जज़ीरे पे हम तुम नए नए तो हैं दोस्त
डरो नहीं मुझे सब कुछ बनाना आता है

यहाँ चराग़ से आगे चराग़ जलता नहीं
फ़क़त घराने के पीछे घराना आता है

ये बात चलती है सीना-ब-सीना चलती है
वो साथ आता है शाना-ब-शाना आता है

गुलाब सिनेमा से पहले चाँद बाग़ के बा'द
उतर पड़ूँगा जहाँ कारख़ाना आता है

ये कह के उस ने सेमेस्टर ब्रेक कर डाला
सुना था आप को लिखना लिखाना आता है

ज़माने हो गए दरिया तो कह गया था मुझे
बस एक मौज को कर के रवाना आता है

छलक न जाए मिरा रंज मेरी आँखों से
तुम्हें तो अपनी ख़ुशी को छुपाना आना है

वो रोज़ भर के ख़लाई जहाज़ उड़ाते फिरें
हमें भी रज के तमस्ख़ुर उड़ाना आता है

पचास मील है ख़ुश्की से बहरिया-टाउन
बस एक घंटे में अच्छा ज़माना आता है

ब्रेक-डांस सिखाया है नाव ने दिल को
हवा का गीत समुंदर को गाना आता है

मुझे तो ख़ैर ज़मीं की ज़बाँ नहीं आती
तुम्हें मिर्रीख़ का क़ौमी तराना आता है

इदरीस बाबर

Tuesday, October 8, 2024

करीब से देख , मेरी दास्तां भी अजीब है बहुत

करीब से देख , मेरी दास्तां भी अजीब है बहुत।
दर्द जो करीब था मेरे,आज भी करीब है बहुत।।

वक्त बदला तो , ना जाने क्या-क्या बदल गया।
जो बा-नसीब थे कल,आज बदनसीब है बहुत।।

Friday, October 4, 2024

ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का

 ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

एक गोशा है ये दुनिया इसी वीराने का

इक मुअ'म्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का

हुस्न है ज़ात मिरी इश्क़ सिफ़त है मेरी
हूँ तो मैं शम्अ मगर भेस है परवाने का

मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म ये है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़्साने का

ज़िंदगी भी तो पशेमाँ है यहाँ ला के मुझे
ढूँढ़ती है कोई हीला मिरे मर जाने का

तुम ने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग
आओ देखो न तमाशा मिरे ग़म-ख़ाने का

अब इसे दार पे ले जा के सुला दे साक़ी
यूँ बहकना नहीं अच्छा तिरे मस्ताने का

दिल से पहुँची तो हैं आँखों में लहू की बूँदें
सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का

हड्डियाँ हैं कई लिपटी हुई ज़ंजीरों में
लिए जाते हैं जनाज़ा तिरे दीवाने का

वहदत-ए-हुस्न के जल्वों की ये कसरत ऐ इश्क़
दिल के हर ज़र्रे में आलम है परी-ख़ाने का

चश्म-ए-साक़ी असर-ए-मय से नहीं है गुल-रंग
दिल मिरे ख़ून से लबरेज़ है पैमाने का

लौह दिल को ग़म-ए-उल्फ़त को क़लम कहते हैं
कुन है अंदाज़-ए-रक़म हुस्न के अफ़्साने का

हम ने छानी हैं बहुत दैर ओ हरम की गलियाँ
कहीं पाया न ठिकाना तिरे दीवाने का

किस की आँखें दम-ए-आख़िर मुझे याद आई हैं
दिल मुरक़्क़ा' है छलकते हुए पैमाने का

कहते हैं क्या ही मज़े का है फ़साना 'फ़ानी'
आप की जान से दूर आप के मर जाने का

हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का

फ़ानी बदायूंनी


शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत

शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत

मरसिए ने दिल के मेरे भी रुलाया है बहुत

बे-सबब आता नहीं अब दम-ब-दम आशिक़ को ग़श
दर्द खींचा है निहायत रंज उठाया है बहुत

वादी ओ कोहसार में रोता हूँ ड़ाढें मार मार
दिलबरान-ए-शहर ने मुझ को सताया है बहुत

वा नहीं होता किसू से दिल गिरफ़्ता इश्क़ का
ज़ाहिरन ग़मगीं उसे रहना ख़ुश आया है बहुत

'मीर' गुम-गश्ता का मिलना इत्तिफ़ाक़ी अम्र है
जब कभू पाया है ख़्वाहिश-मंद पाया है बहुत 

Mir Taki Mir 

Thursday, October 3, 2024

मै तुम्हें इधर उधर ढूढ़ने लगता हूँ

 रात को ख्वाबों में तुम मेरे इतने करीब क्यों आते हो, 

सुबह सुबह नींद टूटते ही मै तुम्हें इधर उधर ढूढ़ने लगता हूँ।  

तेरे दामन से आती है सुकून

 तेरे दामन से आती है सुकून, खुशी की खुशबू, 

मेरी तमाम तकलीफों का इकलौता इलाज हो तुम।