कल की रात , एक ख्वाब आया ,
हसीन पल थे वो, जो तुम्हें साथ पाया,
बात कुछ बढ़ न सकी, कशमकश में यो ही,
खुली जो नींद, तो खुद को उदास पाया ,
हसरतें दिल की फिर एक बार जगीं ,
याद फिर गुजरा, जमाना आया।
महफ़िलें पहले भी, आबाद रहीं थी,
तुम्हारे साथ का फिर,अहसास आया,
ज़िंदगी भर की कसम, ली थी कभी,
क्यों नहीं फिर, उस बात को निभाया,
फैसला क्यों किया, अपने ही हक़ में,
क्यों नहीं आपको, मेरा ख्याल आया।
नींद फिर आ न सकी, नमीं आँखों में रही,
वक्त बेवक्त सनम, तुमने अक्सर ही जगाया ,
कलम भी नम है, लिखूं आज क्या तुमको,
तुम्हारे साथ ने ही तो, हमें जीना सिखाया,
कहानी सबकी जुदा, ज़िंदगी में अपनी अपनी ,
बात वो है अलग ,किसके हिस्से में क्या आया।
बात रब की करें ,तो क्या गुनाह होगा,
फैसला उनका ही , हम सब ने निभाया,
ज़िंदगी चल न सकी ,अपने आप की मर्ज़ी,
कौन किसके भरोसे, कब तलक जी पाया ,
यादें ही ज़िंदगी को जीने के लिए रहतीं,
कौन जाके फिर, इस जहाँ में लौट पाया।
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