सुनो यारों! ख़ताओं को मेरी पहचान रहने दो
फ़रिश्ते तुम बनो, मुझे फ़क़त इंसान रहने दो
ये उम्मीदी हमारी अक्सर हमको दुख ही देती है
भुलाना सीख लो, रिश्तों में अपनी जान रहने दो
कभी जो जिन्दगी के फैसलों में मुस्किलें आए
हर लम्हें नसीहत के लिए सद्ज्ञान रहने दो
खुदी अब भी सलामत है, इरादे अब भी पुख़्ता हैं
मैं लड़ सकता हूँ तन्हा आप ये एहसान रहने दो
किताबों से न सीखोगे जो दुनिया सिखाएगी
दुनिया में भी अपनी थोड़ी सी पहचान रहने दो
ये दुनिया चार दिन की, किस बात से डरना
भले सबकुछ लुटा दो, मगर इमान रहने दो॥
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