Tuesday, February 13, 2024

ख़्वाब सारा ही अधूरा रक्खूँ

तुझ से उम्मीद भला क्या रख्खूँ

किस लिए क़र्ज भी तेरा रक्खूँ।

तुझ से कुछ माँगने से अच्छा है
ख़्वाब सारा ही अधूरा रक्खूँ।

तू अलग खूब बना ले दुनिया
इक अलग मैं नई दुनिया रक्खूँ।

फेर कर मुँह मुझे भी रहना है
चुप रहूँ और न रिश्ता रक्खूँ।

दर्द अपना ही ऐ दोस्त है काफी
और क्या दर्द पराया रक्खूँ।

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