जब से आये सनम की संगत में।
जि़न्दगी पड़ गयी है ज़हमत में।
ख्वाब की अब नहीं ज़रूरत कुछ,
उसको पाया है जब हक़ीक़त में।
प्यार शर्तों पे हो नहीं सकता,
कोई सौदा चले न उल्फ़त में।
दूर उससे सदा रहो हमदम,
जो ख़यानत करे अमानत में।
साथ उसका ’ऐ दोस्त’ भी चाहे,
काम आये जो कल ज़रुरत में।
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